________________
शब्दार्थ
भावार्थ
48 अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अ० अभिलाप से ज० जैसे सि० शिवका तं० वैसे ही जा० यावत् क० कैसे ए० यह म० मानाजावे ए० ऐसे सा० स्वामी स० पधारे जा० यावत् प० परिषदा प० पीछीगई भ० भगवान गो० गौतम त० तैसे (भि० भिक्षाचरी केलिये त० तैसे ब० बहु म० मनुष्यों का स० शब्द नि० सुना त० तैसे स० सब भा० ( कहना जा० यावत् अ० मैं पु० पुनः गो० गौतम ए० ऐसा आ० कहता हू ए० ऐसा भा० बोलता हूं ए० आलंभियाए यरीए एवं एएणं अभिलावेणं जहा सिवस्स तचेव जाव से कहमेयं
* प्रकाशक - राजावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
मणे एवं ? सामी समोसढे जाव परिसा पडिगया || भगवं गोयमे तहेव भिक्खा - यरियाए तहेव बहुजणसद्दं निसामेइ तहेव सव्वं भाणियव्वं जाव अहं पुण गोयमा ! एव माइक्खाभि एवं भासामि जाव परूवेमि देवलोएसुणं देवाणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई ठिई पण्णत्ता तेणपरं समयाहिया दुसमियाहिया जाव उक्कोसेणं तेत्तीसं पीछे स्थिति का क्षय है || १६ || तब आलंभिका नगरी में इस कथन से जैसे शिवराजर्षिका कथन वैसे ही यावत् वह किस तरह है ? उस काल उस समय में स्वामी पधारे, भगवान गौतम स्वामी भिक्षाचरी केलिये नीकले यावत बहुत मनुष्यों से ऐसा सुनकर भगवंत की पास आये और वंदना नमस्कार कर पूछने । लगे कि अहो भगवन् ! पुद्गल परिव्राजक जो इस तरह कहता है सो कैसे है ? अहो गौतम ! पुद्गल परिव्राजक का यह कथन मिथ्या है. मैं ऐसा कहता हूं कि देवलोक में देवता की जघन्य दश हजार वर्ष की
१६५२