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शब्दार्थ ते० उस का काल ते. उस स० समय में आ० आलंभिका ना० नामकी न० नगरी हो थी व० वर्णन
युक्त सं० शंखवन चे० उद्यान त० वहां सं० शंखवन चे० उद्यान की अं० पास पो० पुद्गल प.परिव्राजक V५० रहताथा रि० ऋग्वेद ज० यजुर्वेद जा. यावत् न• नय में सुः पंडित छ० छठ २ से जा० यावत्
आ. आतापनालेते प० प्रकृति भद्रिक से ज० जैसे सि० शिव को जा ० यावत् वि. विभंग णा० नामक dic अ० अज्ञान स० उत्पन्न हुवा से० अब ते. उस वि विभंग अ० अज्ञान उ उत्पन्न होने से बं० ब्रह्म
तेणं समएणं आलंभिया णामं णयरी होत्या वण्णओ, संखवणे चेइए वण्णओ, तत्थणं संखवणस्स चेइयस्स अदूरसामंते पोग्गलेणामं परिव्याए परिवसइ, रिउव्वेय जउव्वेय जाव नएसु सुपरिनिट्ठिए, छटुं छोणं अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं उड़े वाहाओ जाव आयात्रमाणे विहरइ तएणं तस्स पोग्गलस्स छटुं छट्रेणं जाव आयावेमाणस्त पगइ.
भद्दयाए जहा सिवस्स जाब विभगे णाम अण्णाणे समुप्पण्णे, सेणं तेणं विभंगे णामं भावार्थ आलंभिका नामक नगरी थी. शंखवन नामक उद्यान था. उस शंखवन उद्यान की पास पुद्गल नामक
परिव्राजक रहता था. वह ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद व अथर्वणवेद आदि अनेक शास्त्रों जाननेवाला था. ब्राह्मणों के नय व न्याय शास्त्र आदि में निपुण था और छठ २ की निरंतर तपस्या करके अर्ध्व बाहु से यावत् आतापना लेता हुवा विचरता था. इस तरह छठ २ की तपस्या सहित आतापना हवे, प्रकृति भद्रिकपना से यावत् शिवराजर्षि जैसे विभंग ज्ञान उत्पन्न हुवा. उस विभंग है।
पंचमांगविवाह पण्णति ( भगवती)
अग्यारवा शतकका बारहवा उद्देशान
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