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शब्द थे
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सत्र
* अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी gos
अब इ० ऋषिभद्रपुत्र दे० देव दे० देवलोक में से आ. आयुष्यक्षय से जा. यावत् क० कहां उ० उत्पन्न होगा गो. गौतम म. महाविदेह क्षेत्र में सि० सीझेंगे जा. यावत् अं० अंत का करेंगे से. वैसे ही भ० भगवन् भ० भगवान् गो० गौतम जा. यावत् अ• आत्माको भा० विचारते वि० विचरते हैं ॥१२॥ १० तब म० श्रमण भ. भगवंत म० महावीर . अन्यदा कदापि अ. आलंभिका न० नगरी मे से सं० शंखवन चे० उद्यान में से १० नीकलकर बा० बाहिर ज० जनपद वि० विहार वि• विचरने लगे ॥१३॥
भाविस्सइ ॥११॥ सेणं भंते ! इसिभद्दपुत्ते देवत्ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव कहिं उववजिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहवासे सिज्झिहिइ जाव अंतं काहिति ॥ सेवं भंते ! भंतोत्त ॥ भगवं गोयमे जाव अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ १२ ॥ तएणं समणे भगवं महावीरे अण्णया कयायि आलंभियाओ णयरीओ संखवणाओ चेइयाओ
पडिनिक्खमइ २ त्ता, बाहिरिया जणवय विहारं विहरइ ॥ १३ ॥ तेणं कालेणं । वहां से आयुष्य, स्थिति व भव क्षय से कहां उत्पन्न होयेंगे ? अहो गौतम ! महाविदेह क्षेत्र में सीझेंगे यावत् अंत करेंगे. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य हैं यों नप व संयम से आत्मा को भावते हुवे श्री गौतम स्वामी विचरने लगे ॥ १२॥ तत्पश्चात् श्रमण भगवंत महावीर स्वामी उस आलंभिका नगरी के शंखवन उद्यान में से वाहिर नीकलकर जनपद विहार से विचरने लगे ॥ १३ ॥ उस काल उस समय में
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
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भावार्थ