SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1676
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ NTS 48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8.2 भ० भगवन्त को 40 वंदना कर ण नमस्कार कर ए. ऐसे व बोले ५० समर्थ इ. ऋषिभद्रपुत्र : श्रमणोपासक दे देवानुप्रिय की अं० पास मुं० मुंड भ० होकर अ० गृहवास से अ० अनगारपना प. अंगीकार करने को गो• गौतम जो नहीं इ० यह अ० अर्थ स. समर्थ गो. गौतम इ. ऋषिभद्रपुत्र स० श्रमणोपासक ब० बहुत सी• शीलव्रत गु० गुणव्रत वे० विरमणव्रत प० प्रत्याख्यान पो० पौषध उ० उपवास अ० यथा प० ग्रहण किये हुवे त० तपकर्म से अ० स्वतः को भा० विचारते ब० बहुत वा० वर्ष भगवं महावीरं वंदइ णमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-पभूणं भंते ! इसिभद्द पुत्ते समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पन्चइत्तए ? गोयमा ! णोइणटे समटे, गोयमा ! इसिभद्दपुत्तेणं समणोवासए बहूहिं सीलन्वयगुणवयवेरमणपञ्चक्खाणपोसहोववासेहिं अहापरिग्गहिएहिं तवोकम्मेहिं भगवान गौतम स्वामी श्रपण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर पूछने लगे कि अहो भगवन् ! ऋषिभद्र पुत्र नामक श्रमणोपासक क्या आपकी पास मुंडित बनकर गृहस्थपना से साधुपना अंगीकार करने को समर्थ है ? अहो गौतम ! यह अर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् ऋषिभद्रपुत्र श्रमणोपासक मुंडित नहीं होवेंगे. परंतु बहुन शीलवत, गुण व्रत, विरमण व्रत, पौषधोपवास वगैरह ग्रहण करके तप कर्म से *प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy