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शब्दाथा
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र १
अ० अर्थ सो सुनकर णि अवधारकर स. श्रमण भ० भागवंत म० महावीर को वं० वंदना कर ण..। नमस्कार कर जे. जहां इ० ऋषिभद्रपत्र म० श्रमणोपासक तेवहां उ.आकर इ. ऋषिभद्रपुत्र स. श्रमणी पासक को वं० वंदना की ण० नमस्कार किया ए• इस अ० अर्थ स० सम्यक् वि. विनय से भु० वारं
१६४५ वार खाः खमाया ॥१॥ त तब ते० वे स० श्रमणोपासक ५० प्रश्न पु० पुछकर अ० अर्थ ५० ग्रहण कर स० श्रमण भ. भगवंत म. महावीर को वं० वंदना कर ण नमस्कार कर जा जिस दि० दिशि पा० आये ता० उस दिशि में प० पीछे गये ॥ १० ॥ भं. पूज्य भ० भगवान् गो० गौतम स० श्रमण
चंदित्ता नमंसित्ता जेणेव इसिभद्दपुत्ते समणोवासए तेणेव उवागच्छंति २ त्ता, इसिभद्दपुत्तं समणोवासगं वंदति णमंसंति एयमटुं सम्मं विणएणं भुजो भुजो खामेति ॥ ९ ॥ तएणं ते समणोवासगा पसिणाई पुच्छति २ त्ता, अट्ठाइं परियादियंति २ त्ता, समणं भगवं महावीरं वदति णमंसंति वंदित्ता णमंसित्ता जामेव
दिसिं पाउन्भया तामेवदिसि पडिगया ॥ १० ॥ भंतेति ! भगवं गोयमे समणं . श्रमणोपासक की पास आये और उन को वंदना नमस्कार कर अपना अपराध की विनय पूर्वक क्षमा मांगी ॥ ९ ॥ फीर उन श्रमणोपासकोंने अन्य अनेक प्रश्न पूछे, उन का अर्थ धारन किया, और श्रमण भगवंत श्री महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार कर जहां से आये थे वहां पीछे गये ॥१०॥ उस समय में
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*6503> अग्यारवा शतक का वारह। उद्दशा
भावार्थ
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