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शब्दार्थ तुष्ट ए. ऐसे ज. जहां तु. तुंगिया का उ० उद्देशा जा. यावत् ण. नमस्कार कीया ॥५॥ त तब
स. श्रमण भ० भगवंत म. महावीर ते. उन म० श्रमणोपासकों को ती• उस म० बडी ध० धर्मकथा जा० यावत् आ० आराधक भ० होता है ॥ ६ ॥ त० तव ते वस० श्रमणापासक स० श्रमण भ. भगवंत म. महावीर की अंपास प. धर्म सो० मुनकर णि अवधारकर हर हुए तुकतुए उ. उठक स० श्रमण भ० भगवंत म० महावीर को वं० वंदना ण नमस्कार कर ए. ऐमा व. बोले ए. ऐसे
वासगा इमीसे कहाए लट्टा समाणा हट्ठतुट्ठा एवं जहा तुंगियोदेसए जाव णमंसंति ॥ ५॥ तएणं समणे भगवं महावीरे तेसिं समणोबासगाणं तीसेय महइ धम्मकहा जाव आणाए आराहए भवइ ॥ ३ ॥ तएणं ते समणोबासगा समणरस भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा णिसम्म हट्ठतुट्ठा उट्ठाए उट्टेति, उट्टेइत्ता समणं भगवं
महावीरं वंदंति णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी एवं खलु भंते! इसिभद्दे भावार्थ यावत् आनंदित हुवे वगैरह जैसे तुंगिया नगरी के श्रावकों का कथन किया वैसे ही यहांपर कथन जानना।।५॥उम
समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामीने उस महती परिपदा में धर्मोपदेश सुनाया यावत् आज्ञा का आराHधक होता है वहां तक कहना ॥ 6 ॥ भगवंत श्री महावीर स्वामी से ऐसा धर्मोपदेश सुनकर श्रावक बहुत
हर्षित हुवे और उठकर वंदना नमस्कार करने लगे. फीर वंदना नमस्कार कर बोलने लगे कि अहो भग
100 अनवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी १
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *