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________________ शब्दार्थ ए. ऐमा ५० प्ररूपते ए. यह अ० अर्थ णो नहीं स० श्रद्धने हैं जो नहीं प. प्रतीति करते हैं णो०१ : नहीं रो० रुचि करते हैं ए. यह अ० अर्थ अ० नहीं श्रद्धने अ० नहीं प्रतीति करते अ. नहीं रुचि करते जा०जिसदिशि से पार आये ता. उस दि० दिशी में १० पीछे गये ॥३॥ ते. उस का. काल ते०१ उस स० समय में स, श्रमण भ. भगवंत म० महावीर जा० यावत् स० पधारे जा. यावत् प० परिषदाई प० पर्युपासना की ॥ ४ ॥ त० तब स० श्रमणोपासक इ० इस क० कथा ल प्राप्त हुई ह. हृष्ट तु. भद्दपुत्तस्स सम्णोवासगस्स एवमाइक्खमाणस्स जाव एवं परूवेमाणस्त एपमढें णो सदहति, णोपत्तियंति, णो रोयंति. एयमद्रं असद्दहमाणा अपत्तियमाणा अरोएमाणा जामेवदिसि पाउब्भूया तामेवदिसिं पडिगया ॥ ३ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव समोस ढे, जाव परिसा पज्जुवासइ ॥४॥तएणं ते समणोभावार्थ णोपासक के कथन पर श्रद्धा प्रतीति व रुचि की नहीं. और इस तरह श्रद्धा प्रतीति व रुचि नहीं करते हुवे में जिस दिशा में से आये थे उसी दिशा में पीछे गये ॥ ३ ॥ उस काल उस समय में श्रमण भगवंत महाof वीर स्वामी उस बालंभिका नगरी में पधारे. परिषदा वंदने को आई, धर्मोपदेश सुनकर पीछो गई ॥ ४ ॥ उस समयमें वहां के श्रमणोपासकोंने भगवंत श्रीमहावीर स्वामी के पधारने की वार्ता सुनी, और बहुत हर्षित पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 8888 nnrmmmmwwwimmom * अग्यारवा शतक का बारहवा उद्दशा व
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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