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शब्दार्थ
49 अनुवादक-बालब्रह्मवारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
श्रमणोपासक को एक ऐसे व० बोले दे० देवलोक में अ० आर्य दे० देवों की ज० जघन्य द० दश वा. वर्ष म सहस्र ठि• स्थिति प० प्ररूपी ते उस पीछे स० समयाधिक दु० दो स० समयाधिक जा० यावत् द० दश समयाधिक सं० संख्यात स० समयाधिक अ० असंख्याता म° समयाधिक उ• उत्कृष्ट ते. तेत्तीस सा० सागरोपम की ठि० स्थिति ५० प्ररूपी ते० उस पीछे वो० नष्ट दे देव दे० देवलोक ॥२॥ त० तव ते वे स० श्रमणोपासक इ० ऋपिभद्र पुत्र स० श्रमणोपासक को ए०ऐसा आ०कहते जा० यावत् 2 ट्रिई गहियट्रे ते समणोवासए एवं वयासी देवलोएस गं अज्जो! देवाणं जहण्णेणं
दसवास सहस्साइं ठिई पण्णत्ता, तेणपरं समयाहिया दुसमयाहिया जाव दससमया. हिया संखेजसमयाहिया असंखेजसमयाहिया उक्कोसणं तेत्तीस सागरोवमट्टिई
पण्णत्ता, तेणपरं वोच्छिण्णा देवाय देवलोगाय ॥ २ ॥ तएणं ते समणोबांसगा इसिउन में परस्पर ऐसा वार्तालाप हुवा कि अहो आर्यो ! देवलोक में देवताओं की कितनी स्थिति कही ? उन समय में देव स्थिति के जाननेवाले ऋषिभद्र पुत्र नामक श्रमणोपासक ने कहा कि अहो आर्यो ! देवलोकन में देवों की जघन्य दश हजार वर्ष की स्थिति कही और इस में एक समय, दो समय यावत् दश समय संख्यात, असंख्यात समय अधिक होते २ उत्कृष्ट तेत्तीस सागरोपम की स्थिति कही. इस से आगे देवलोक में देवता की स्थिति का विच्छेद होता है ॥२॥ उस समय में उक्त श्रमणोपासकने ऋषिभद्र पुत्र श्रम
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ।