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शदायसेन
* ए० ऐसे ए• यह भं० भगवन् जा. यावत् ज० जैसे तु. तुम व कहते हो त्ति ऐसा क• करके उ०
ईशान कोन में अ० गया से० शेष ज. जैसे उ० ऋषभदत्त जा. यावत् स० सब दु०दुःख ५० रहित ण विशेष च० चतुर्दश पु० पूर्वका अ० अध्ययन किया ब. बहुत प. पूर्ण दु० बारहवर्ष सा० साधुपना पा० पालकर से० शेष तं० तैसे से वैसे ही भं० पूज्य म० महाबल म समाप्त ॥ १२ ॥ ११ ॥
तक उस का काल ते० उस ससमय में आ० आलंभिका ण नगरी हो० थी व० वर्णन युक्त स० तुझे वदहत्तिक? उत्तरपुरच्छिमं दिसीभागं अवक्कमइ । सेसं जहा उसभदत्तस्स जाव सव्वदुक्खप्पहीणं णवरं चउद्दसपुव्वाइं अहिज्जइ, बहुपडिपुण्णाई दुवालस वासाई सामण्णपरियागं पाउणइ ससं तंचेव ॥ सेवं भंते भंतेत्ति ॥ महब्बलो सम्मत्तो ॥ एगारस सयरसय एगारसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ ११ ॥ ११ ॥
तेणं कालेण तेणं समएणं आलंभिया णामं णयरी होत्था वण्णओ संखवणे चेइए भावार्थ पूर्व (ईशान ) कौन में गया, वहां जाकर शेष सब ऋमदत्त ब्राह्मण समान दीक्षा धारन कर कर्म का
क्षय कर मुक्ति प्राप्त की वगैरह कहना. विशेष में इतना कि चौदह पूर्व का अध्ययन किया, बारह वर्ष संयम पाला. अहो भगवन् ! आप के ववन सत्य हैं. यह महावल का अधिकार संपूर्ण हुवा. यह अग्यारहवा शतक का अग्यारहवा उद्देशा पूर्ण हुवा ॥ ११ ॥ ११॥ . .
. , अग्यारहवे उद्देशे में काल को स्वरूप कहा अब आगे काल के भांगांतर कहते हैं. उस कालं उस
१० अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋापजी.
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *