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शब्दार्थ त० मे अ० आवरणीय कर्म के ख० क्षयोपशम से ई. विचारणा म०मार्ग की गगषणा क० करते हुए। |० स० संज्ञो पु० पूर्वजाति स० स्मरण स० उत्पन्न हुवा ए . इस अं• अर्थ को स० सम्यक् प्रकार से स० ०
अच्छा जाना ॥४२॥ त० तव ते. उन मु० सुदर्शन से० श्रेष्ठि स० श्रमण भ. भगवंत म.30 महावीर सं० स्मरण कराया पु० पूर्वभव दु० दुगुना म० श्रद्धा संवेग आ आनंद सं० पूर्ण न नयन इस श्रमण भ. भगवंत म० महावीर को ति० तीन व० वंदना कर ण. नमस्कार कर ए० ऐसे व० बोले
ईहापोहमग्गणगवेसणं करेमाणस्स सणी पव्वजाईसरणे समप्पण्णे एयमद्रं सम्म अभिसमेति ॥ ४२ ॥ तएणं ते सुदलणे सेट्ठी समणेणं भगवया महावीरेणं संभारिय पुन्वभवे दुगुणाणिय सढुसंवेगे आणंदसंपुण्णणयणे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो
आ २ वंदति णमंसति बंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी एवमेत भंते! जाव से जहयं भावार्थ | व शुभ परिणाम मे धारन करने से आवरण रुप कर्ष का क्षय किया, विचारणा करते हुये
संजीरूप जाति स्मरण ज्ञान उत्पन्न हुवा और इस से भगवंत श्री महावीर स्वामीने जो कथन किया था | इस को सम्यक् प्रकार से जानने लगा ॥ ४२ ॥ श्रमण भगरन्त श्री महावीर स्वामीने सुदर्शन श्रेष्ठि को । पूर्व भा का जिससे वह दुगुनी श्रद्धा व मंगवाला हुवा, आनंद से परिपूर्ण हुवा और श्रमण भगवंत महावीर स्वामी को वंदना नमस्कार करके बोलने लगा कि अहो भगवन् ! जो आप कहते हैं. वह ऐसाही है यों कहकर उत्तर |
पंचमांग विवाह पण्णत्ति (भगवती) मूत्र 4.9g
07 अग्यारवा शतक का अग्यारहवा उद्देशा