________________
शब्दार्थ की ठि• स्थिति १० प्ररूपी से. अथ तु• तुम मु० सुदर्शन बं० ब्रह्मलोक क० देवलोक में द० देश सा
सागरोपम के दि० दीव्य भो० भोगोपभोग भुं० भोगते हुवे वि• विचरने को त० तत्पश्चात् दे. देवलोक V में से आ० आयुष्यलय अ० अनंतर च. चवकर इ० इस वा वाणिज्यग्राम न० नगर में से० श्रेष्टिकुल
में पु० पुत्रपने ५० उत्पन्न हुवा त० तब तु० तुम सु० सुदर्शन उ० मुक्त बा० बालभाव से वि० विज्ञान १५० परिणत से जो० यौवन को अ० प्राप्त नहीं हुवे त० तथारूप थे० स्थविर को अं• पास से के.
ब्बलस्सवि देवस्स दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता ॥ सेणं तुम्मं सुदंसणा ! बंभलो. • ए कप्पे दससागरोवमाइं दिव्वाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरित्तए ॥ तओचेव
देवलोगाओ आउक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता इहेव वाणियगामे णयरे सेट्टि । कुलसि पुत्तत्ताए पञ्चायाए ॥ तएणं तुम्मं सुदंसणा! उम्मुबाबालभावणं विण्णाय
परिणयमेत्तेणं जोब्बणग मणुप्पत्तेणं, तहारूवाणं थेराणं अंतियं केबलिपण्णत्ते धम्मे भावार्थ
हुवा. यहां पर उन की दश सागरोपम की स्थिति कही. अहो सुदर्शन ! तुम पांचवे ब्रह्मदेवलोक में
दश सागरोपम की स्थिति से दीव्य भोग भोगत हवे विचरते थे. फीर आयुष्य, स्थिति व भव का 0 3क्षय होने से वहां से चवकर यहां पर वाणिज्यग्राम नगर में श्रेष्ठिकुल में पुत्रपने उत्पन्न हुए हो. अहो be
सुदर्शन ! तुमारी पाल्यावस्था मुक्त हुई है, तुम ७२ कला में प्रवीण हुए हो और यौवन अवस्था प्राप्त होते है ।
28 पंचपाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती) सूत्र <288%
wwwmmmmmmmmmaniawin
48 अग्यारवा शतकका अग्यारहवा उद्देशा867