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शब्दार्थ
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१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी ६१
पढकर ब० बहुत च० चतुर्थ जा. यावत् वि० विचित्र त तपकर्म से अ० स्वतः को भा० विचारता व० बहुत प० प्रतिपूर्ण दु. बारह वा० वर्ष सा० साधु की प० पर्याय पा. पालकर मा० मास की सं० खना से स० साठ भक्त अ० अनशन आआलोचना ५० प्रतिक्रमण सहित का काल के अवसर में का० काल कि० करके उ० अर्ध चं० चंद्र सू० सूर्य ज. जैमे अ. अम्बड जा० यावत् 4. ब्रह्मलोक क० देवलोक में दे० देवतापने उ० उत्पन्न हुए त • वहां अः कितनेक दे देवों की द० दश सा० सागरोपम
याइं चउद्दसपुब्वाइं अहिजइ २ त्ता बहूहिं चउत्थ जाव विचित्तेहिं तवोकम्महिं अप्पाणं भावमाणे बहुपडिपुण्णाई दुवालसवासाइं सामण्णपरियागं पाउण३ २ त्ता मासियाए संलेहणाए सर्द्धि भत्ताइ अणसणाए आलोइय पडिकंते समाहिपत्ते काल मासे कालं किच्चा उड़ चंदिमसूरिय जहा अम्मडो जाव बंभलोए कप्पे देवत्ताए
उववण्णे; तत्थणं अत्थेगइयाणं देवाणं दस सागरोवमाइं ठिई पण्णत्ता, तत्थणं महखना से आत्मा को झोसकर साठ भक्त अनशन का छेदन कर आलोचना प्रतिक्रमण कर काल के अवसर में काल कर जैसे अम्बड सन्यासी ऊंचे चंद्र सूर्य में उत्पन्न हुवा वैसे ही पांचवे ब्रह्मदेवलोक में उत्पन्न
* पूर्वधर जघन्य छठे देवलोक में उत्पन्न होते हैं और यहां पांचे देवलोक में उत्पन्न होने का कहा है. इस से यहां पर मरण समय में पूर्व का विस्मरण होने का संभव है.
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी *
भावार्थ
ॐ