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ककुमार का तं० उस म: बहुत ज० मनुष्य शब्द ज० मनुष्य का समूह ए. ऐसे ज० जैसे ज० जमाली ० त० तैसे वि• जानकर त० तैसे कं. कंचुकी पु० पुरुषों को म० बोलाकर के० कंचुकी पु० पुरुषोंने त.
वैसे ही अ० कहा ण. विशेष ध० धर्मघोष अ० अनगार का आ० आगमन ग० जाना वि०निश्चय किया क० करतल जा० यावत् णि. नीकले ऐ. ऐसे दे. देवानप्रिय वि०विमल अ. अरिहंत ५० प्रशिष्य ध० धर्मघोप अ० अनगार से• शेष तं नैसे जा. यावत् सो० वह भी त० तैसे र० श्रेष्ट रथ से तहेव कंचुइज्जपुरिसे सद्दावेइ, कंचुइज्ज पुरिलो तहेव अक्खाइ, गवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स आगमणगहियविणिच्छए करयल जाव णिग्गच्छइ ॥ एवं खलु देवाणुप्पिया! विमलस्स अरहओ पउप्पए धम्मघोसे णाम अणगारे सेसं तंचेव जाव सोवि तहेव रहवरेण णिग्गच्छइ, धम्मकहा जहा केसिसामिस्स सोवि तहेव अम्मापियरं
आपुच्छइ, णवरं धम्मघोसस्स अणगारस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ भावार्थ
अन्य से पूछकर हाथ जोडकर कहने लगे कि अहो देवानुप्रिय ! श्री विमलनाथ अरिहंत के प्रशिष्य श्री धर्मघोष नामक अनगार पांच सौ साधु के परिवार सहित तप संयम से आत्मा को भावते हुवे विचरते हैं. इस तरह वृत्तान्त सुनकर जमाली जैसे रथारूढ होकर महाबल कुमार नीकले. धर्मकथा श्रवण की, और मातपिता की आज्ञा लेकर धर्मघोष अनगारकी पास दीक्षा अंगीकार की. इसमें विशेषता इतनी कि
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र 4387
.अग्यारवा शतक का अग्यारवा उद्देशा