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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
+९१३ पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ते ( भगवती ) सूत्र +
॥ ३६ ॥ त० तब से० वह म० महाबल कु० कुमारने ए० एक २ भ० भार्या को ए० एक २ हि० हिरण्य क्रोडमु० सुवर्ण क्रोड द० दिया ए० एक २० मुकुट प० श्रेष्ठ द दिया ऐ० ऐने ही तं वैसे ही जा० यावत् ए० एकर पे० प्रेषण करने वाली द०दी अ अन्य सु०बहुत हि० हिरण्य सु० सुवर्ण जा० यावत् प० विभाग करने को त० तब से वह म० महाबल कुमार उ० उपर पा० प्रासाद में रहा हुवा ज० जैसे ज० जमाली वि० विचरता ॥ ३७ ॥ ते० उस का काल ते ० उस म० समय में वि० त्रिमल अ० अरिहंत के १० प्रशिष्य घ० धर्मघोष अ० अनगार जा० जाति संपन्न व० वर्णन युक्त ज० जैसे के० केशिस्वामी मेगाभागमेगं हिरण्णकोडिं दलयइ, एगमेगं सुवण्गकोडिं दलयइ एगमेगं मउडं मउडप्पवरं दलयइ ॥ एवं तं चैव सव्वं जाव एगमेगं पेसणकारिं दलयइ || अण्णंच सुबहु हिरणंवा सुवणंवा जात्र परिभाएउं ॥ तएणं से महब्बले कुमारे उपिपासायवरगए जहा जमाली विहरइ ॥ ३७ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं विमलस्स अरहओ ओप धम्मघोसे णामं अणगारे जाइसंपण्णे वण्णओ जहा केसिसामिस्स जा उन में से महावल कुमारने उन आठों भार्याओं को एक २ हिरण्य क्रोड, एक २ सुवर्ग क्रोड, एक २ श्रेष्ट मुकुट) ( यावत् एक २ प्रेषणकारी दीया और सातवेशतक अन्य को देते व भोगते भी खूंटे नहीं इतना { हिरण्य वगैरह दिया. इस तरह महाबल कुमार जमाली जैसे प्रासाद पर भोग भोगता हुन विचरता था || ३७॥ उस काल उस समय में जाति संपन्न कुल संपन्न वगैरह केशीस्वामी जैसे गुणोंवाले धर्मघोष नामक अनगार
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40850 अपरवा शतक का अभ्यारचा उद्देशा
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