________________
१६२८
शब्दार्थ धरने वाल व० बलीकर्म करने वाली से शय्या करने वाली अ० आभ्यंतर प० परिचारिका वा बाहिर
की प० परिचारिका मा० माला करने वाली ५० प्रषण करने वाली अ० अन्य सु० बरत हि० हिरण्य मु० सुवर्ण कं० कांस्य दू० वस्त्र वि० विपुल ध० धन कनक जा० यावत् सं० प्रधान सा० धन अ. देवे जा० यावत् आ० सातवा कु० कुलवंश प० प्रकाम दा० देने को ५० भोगने को ५० विभाग करने को
अब्भाधारिणीओ, अट्ठ पुष्काधारिणीओ अट्ठ पाणधारिणीओ, अठ बलिकारियाओ, अट्ट सेजाकारिओ, अट्ट अभितरियाओ, पडिहारीओ; अट्ट बाहिरियाओ पडिहारीओ, अट्ठ मालाकारीओ, अट्ठ पेसणकारीओ, अण्णेच सुबहु हिरण्णवा सुवण्णंवा, कंसंवा, दूसंवा, विउलधणकणग जाव संत सावदेनं अलांहि जाव आसत्तमाओं
कुलवंसाओ पकामं दाउं पकामं परिभोत्तुं परिभाएउं । २६ ॥ तएणं से महब्बले भावार्थ: आठ दासियों, बलपराक्रम करनेवाली आउ दासियों, शैय्या विछानेवाली आठ दासियों, गुप्त कार्य करने
वाली आठ दासियों, बाह्य कार्य करनेवाली आठ दासियों, माला बनानेवाली आठ दासियों, आठ प्रेषण करनेवाली वगैरह और इस सिवाय अन्य बहुत हिरण्य सुवर्ण, कांस्य, वस्त्र, और विपुल धन. कनक, यावत् प्रधान द्रव्य वगैरह का प्रीति दान दीया कि जो सात वंश तक अन्य को देते व स्वयंभोगते खूटे नहीं।॥३६॥
4.2 अनुवादक-बालब्रह्मवारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजीबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रमादजी *