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शब्दार्थ
रा०
48 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र <ast
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॥ ३३ ॥ त० तब तक उन म. महाल कुमार के अ. माता पिता सा. अधिक अ) आठवर्ष का जा० जानकर सो० शुभ ति० तिथि क०करण मु० मुहूर्त में ए० ऐसे ज० जैसे द• दृढ प्रतिज्ञी जायावत् अ० योग्य भो० भोग समर्थ जा० जागृत हो० हुवा त. तब तं. उस म. महाबल कु. कुमार को उ० उन्मुक्त वा वाल भाव अ० योग्य ओ० भोग समर्थ जा. जानकर अ०आठ पा० प्रासादर अ. अवतंसक का करावे अ० गयेहवे ऊ० ऊंचे प. हसने हवे ब वर्णन युक्त ज. जैसे रायपश्रेणी जा. यावत् १० प्रतिरूप ते. उन पा० प्रासाद अ० अवतंसक ५० बहुत म० मध्य में म. गढ़वासगं जाणित्ता, सोभणंसि तिहिकरणमुहुत्तसि एवं जहा ददुप्पइण्णे जाव अलंभोगसमत्थे जागरेयावि होत्था ॥ तएणं तं महब्बलं कुमार उम्मुक्कवालभावं अलंभोगसमत्थवि जाणित्ता अम्मापियरो अट्टपासायवाडिसए कारोत, अब्भुग्गय
मूसिय पहसिएइव वण्णओ जहा रायप्पसेणइजे जाव पडिरूवे; तेसिणं पासायवडिंरक्षाभिधारणादि उत्सब किये ॥ ३३ ॥ जब म्हाबल कुमार आठ वर्ष से अधिक के हुवे तब शोभनिक ( अच्छी) तीथि व मुहूर्त में दृढ गतिज्ञी कुमारवत् विद्याभ्यास कराया यावत् भोग पर्याप्त अवस्था अंगो से जानकर महाबल के मातपिताने सब प्रासादों में मुकुट समान ऐसे आठ मासाद बनाये. इस का सव |
अग्यारवा शतकका अग्यारवा उद्देशा 96
भावार्थ
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