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शब्द, र्थ ।
सूत्र
भावार्थ
4 पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र 400
कु० कुलसंतान त० तंतु वि० वृद्धि करने वाला एक इसरुप गो० गौण गु० गुणनिष्पन्न ना० नाम क० करे ज० जैसे अ० हम इ० यह दा० बालक व बलराजा का पु० पुत्र प० प्रभावती दे० देवी का अ० आत्मज अ हम इ० इस दा० पुत्रका ना० नाम म० महाबल त० तब त० उस दा० पुत्रके अ० माता पिता ना० नाम क० कहते हैं म० महावल ॥ ३१ ॥ त० तत्र से वह म० महाबल पं० पंचधात्री प० रहा हुवा खीः क्षीरधात्री ए० ऐने ज० जैसे द० दृढप्रतिज्ञी जा० यावत् णि० निपात अयमेयारूवं गोणं गुणनिष्पणं नामधेज्जं करेंति, जम्हाणं अम्हं इमे दारए बलस्स रण पुत्ते भावई देवीए अत्तए तं होउणं अम्हं इमस्स दारगस्स नामधेजं महब्बले तएणं तस्स दारगस्स अम्मापियरो नामधेजं करेंति ' महब्बल' इति ॥ ३१ ॥ एणं से महब्बले दारए पंचधाई परिग्गहिए तं खीरधाई एवं जहा दृढप्पइण्णे जाव
सन्मुख दादा, पडदादा, पिता के दादा, से चला आता, बहुत पुरुषों की परंपरा से आता हुवा कुल को { योग्य, कुल संतान तंतु की वृद्धि करनेवाला ऐसा गुण निष्पन्न नाम दिया. यह बालक बल राजा का {पुत्र व प्रभावती देवी का आत्मज है इस से इस पुत्रका नाम महाबल होवो ऐसी नामकी स्थापना की और मातपिताने भी महावल नाम रखा || ३१ || अब महाबल कुमार क्षीरधाई, मंजन धाई, मंडन धाई, खिलानेवाली धाई व अंक घाई यों पांच प्रकार की धाईंयों से वृद्धि पाने लगा वगैरह सव कथन जते उबवाइ
अग्यारखा शतक का अग्यारवा उद्देशा
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