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________________ शब्दार्थ १६१६ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी 82 दिवस में चं चंद्र सू० सूर्य दं० दर्शन क० करे छ० छठे दि० दिवस में जा० जागरणा क• करे अ० * - अग्यारहवा दि० दिवस: वी. व्यतीक्रान्त णि निवृत्ति अ० अशुचि जा० जातिकर्म करन सं० संप्राप्त वा. बारहवे दि० दिवस अ० अशन पा० पान खा. खादिम सा० स्वादिम उ० तैयारकर ज. जैसे, सि. शिवराजाप जायावत् ख० क्षत्रिय को आ० आमंत्रण कर त० पीछे पहा० स्नान कीया तं० तैसे जा० यावत् स० सत्कारकर स० सन्मान देकर मि• मित्र णा० ज्ञाति जाल्यावन् ख० क्षत्रियों की पु० आगे अन्दादा प०पडदादा पि०पिताका पडदादा ब बहुत पुरुष १० परंपरा प०रुढीसे कु कुलरूप कु० कुलसरिखा दंसावणियं करेंति, छट्रेदिवसे जागरियं करेंति, एक्कारसमे दिवसे वीइक्कंते णिवत्ते, असुइजाइकम्मकरणे संपत्ते, बारसाहदिवसे विउलं असणपाणखाइमसाइमं उवक्खडावैतिरत्ता जहा सिवो जाव खत्तिए आमंतेइ २त्ता तओ पच्छा पहाया कय तंचेव जाव सकारेंति सम्माणेति २ ता, तरसेव मित्तणाइ जाव खत्तियाणय पुरओ अजय पज्जय पिउपजयागयं, बहुपुरिसपरंपरप्परूढं कुलाणुरूवं कुलसरिसं कुलसंताणतंतुविवद्धणकर, पीछे अशूचि कर्म दूर किया और बारह वे दिनमें अशन, पान, खादिम व स्वादिम बना कर जैसे सिव राजर्षि के अध्ययन में अपने ज्ञाति जनों को किया था वगैरह जो अधिकार है वह सब यहां जानना. यावत् क्षत्रियों को आमंत्रणा करके सव की साथ भोजन कर सब का सत्कार सन्मान वैसे ही सब के प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालामसादजी* भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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