________________
शब्दार्थ
१६१५
* पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र <28.
देशके मनुष्यों सहित ददश दिवस ठि॰ जन्मोत्सव व करे॥२०॥ त तब से वह व०वलराजा द दशदिवस ठि• जन्मोत्सव होते स० शत स. सहस्र स० लक्ष जा० योग वा० व्रत दा० दान भा० भाग द० देते द० दिलवाते स. शत स० सहस्र स० लक्ष ल० लेते ५० ग्रहण करते वि० विचरता है ॥३० त० तव त • उस दा० पुत्रके अ० माता पिता ५० पहिले दि० दिवस में ठि० उत्सव क० करे त• तीसरे
लायमल्लदामं पमुदियपक्कीलियं सपुरजणजाणवयं दसदिवसे ठिइवडियं करेंति ॥ २९ ॥ तएणं से बलेराया दसदिसाए ठिइवडियाए सतएय साहस्सिएय सय साहस्सिएय जाएय वाएय दाएय भावेय दलमाणेय दवावेमाणेय सतिएय साहस्सिएय . सयसाहस्सिएय लंभे पडिच्छमाणेय पडिग्छावमाणेय एवं विहरइ ॥ ३० ॥ तएणं
तस्स दारगस्स अम्मापियरो पढमे दिवसे ठिइवडियं करेंति, तइए दिवसे चंदसूरक्रीडा सहित जनपद देश के लोकों ने दश दिन पर्यंत कुल की मर्यादा अनुसार जन्म महोत्सव किया. ॥ २२ ॥ बल राजा दश दिन तक पुत्र जन्म महोत्सव करते हुवे सेंकडो हजारो व लाखों रुपयों का खर्च कर योग पूजा वगैरह दान में देता हुवा व अन्य को देनेकी इच्छा कराता हुवा विचरता था ॥ ३० ॥ जन्म के पहिले दिन बालक का जन्म महोत्सव किया, तीसरे दिन चंद्रसूर्य का दर्शन कराया, छठे दिन गत्रि जागरणा की, अग्यारहवा दिन पूर्ण हुए
4.30 अग्यारवा शतकका अग्यारहका उद्देशा
भावार्थ
।