SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1644
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ *७० वोलाये हुवे जा० यावत् १० पोछीदेते हैं ॥२८॥ त० तब त० वलराजा जे० जहां उ० दिवान खाना तेतहां उ० जाकर जा. यावत् प० तही उ० जाकर जा. यावत् प० स्नानगह से प० नीकलकर उ. उन्मुक्त उ. उत्कर उ० उत्कृष्ट अ०देना नहीं अ०प्रमाण रहित अ०भट प्रवेश करे नहीं अविना अपराध कु० कुदंड अ०धरणा रहित ग०१ गाणका व. प्रधान ना० नाटक क. कालत अ. अनेक ता. प्रेक्षाकारीसे च० सेवाया अ. बजाने वाले मु० मृदंग अ० विनाकालाइ म. दुष्पमाला प० आनंदित प० क्रीडा सहित स० नगर के मनुष्यों ज०१० से कोडंबियपुरिसा बलणं रण्णा एवं वुत्तसमाणा जाव पच्चप्पिणंति ॥ २८ ॥ तएणं से बलेराया जेणेव उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ २ त्ता, तंचेव जाव मजणघराओ पडिनिक्खमइ २ ता उम्मुकं उक्करं उक्केढें अदिजं अमेजं अभडप्पवेसं अदंडकोदंडिमं अधरिमं गणियावरनाडइज्ज कलियं, अणेगतालाचराणुचरियं अणुहुयमुयंतं अमिभावार्थ भी उस अनुसार सब करके उन को उन की आज्ञा पीछी दे दी ॥ २८ ॥ वहां से बल राजा दिवान खाना में गये वैसे ही यावत् मज्जन गृह से नोकलकर बाहिर से आती हुई वस्तुओं का कर, गवादिक का कर, गृहाादक का कर, व अन्य के ऋण वगैरह लेने का प्रतिषेध किया. सुभटों को अन्य के गृह में प्रवेश करने का प्रतिषेध किया, नगर में स्थान २ में गगिका के नाटकों व मादल के आवाजों शुरू होने लगे. विकसित पुष्पों की मालाओं स्थान २ पर लटकाई, नगर के सब लोक प्रमुदित हुए. अनेक प्रकार की 18 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी - प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी*
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy