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शब्दार्थ 4 बलराजा अं० अंग परिचारिका की अं० पास से ए. यह अर्थ सो० सुनकर णि अवधारकर ह० हृष्ट
तु• तुष्ट जा० यावत् धा• धारा से ह० हणाया जा० यावत् कू• कूप ते• उन अं• अंगपरिचारिका को म मुकुट व०वर्जकर ज जैसे मा०पहिने हुवे उ०आभरण द देवे से० श्चत र० रजतमय विविमल स. सलिल पु० पूर्ण भि भंगार प० ग्रहणकर म० मस्तक धो० धोकर वि० विपुल जी० आजीविका पी० प्रीति
दान द० देकर स• सत्कारकर स सन्मान कर ५० विसर्जन की॥२७॥ त०तब से वह बबल रा. राजा सूत्र अंतिए एयमटुं सोचा णिसम्म हट्टतुटु जाव धारायणीव जाव कूवे, तेसिं अंगपाडे
यारियाणं मउडवजं जहा मालियउमायं दलयइ २ ता, सेतं रययामयं विमलसलिल पुण्णभिंगारं पडिगिण्हइ २ त्ता मत्थएधोवइ २ चा, विउलं जीविथारिहं पीइदाणं
दलयइ २ त्ता, सहारेइ सम्माणेइ ३ त्ता पडिविसज्जेइ ॥ २७ ॥ तएणं से बले. बहुत हर्षित हुए संतुष्ट हुए यावत् रोमांचित हुवे, और अपना मुकुट सिवाय अन्य सव आभूषणों जैसे पहिने हुवे थे वैतेही दे दिये, जलसे भरीहुई झारी अपने हस्तमें लेकर उसदामी के मस्तक का प्रक्षालन किया और उसका दासीपना दूरकिया बहुत कालतक उपभोग में ले ऐमी आजीविका कर दी इस तरह सत्कार सन्मान देकर उसको विसर्जितकी॥२७॥फीर बलराजाने आज्ञाकारी पुरुषों को बोलाये और कहा कि अहो
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावाथे