________________
शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक -बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
विनित दो० दोहला व रहित रो० रोग सो० शोक मो० मोह भ० भय प० परित्रात तं० उस ग० गर्भ को सु० सुख से प० वृद्धि करे ॥ २४ ॥ त० तब सा० वह प० प्रभावती दे० देवी १० नवमास ब० बहुत प० पूर्ण अ० अर्ध अ० आठ रा० रात्रि दिवस वी० व्यतीक्रांत सु० सुकुमार पा० हस्तपांव अ० अहीन प० प्रतिपूर्ण पं० पंचेन्द्रिय स० शरीर ल० लक्षण वं० व्यंजन गु० गुणयुक्त जा० यावत् स० चंद्र सो० सौम्याकार कं० कांत पि० प्रियदर्शन सु० सुरूप दा० पुत्र का प० जन्म दिया ॥ २५ ॥ दोहला, अवमाणियदोहला, विच्छिण्णदोहला, विणीयदोहला, ववगय रोगसोगमोह भयपरित्तासा तं गर्भं सुहंमुहेणं परिवढइ ॥ २४ ॥ तरणं सा पभावई देवी णवण्हं मासाणं बहुपुडिपूण्णाणं अट्ठमाणराइंदियाणं वीइकंताणं सुकुमालपाणिपायं अहीण पुडपुण पंचिंदियसरीरं लक्खणवंजणगुणोववेयं जाव ससिसोमाकारं कंतं पियदंसणं सुरूचं दारगं पयाता ॥ २५ ॥ तणं तीसेय पभावईए देवीए अंगपडियारियाओ उत्पन्न हुए अच्छे दोहले पूर्ण करती हुई. वांच्छित दोहल करती हुइ और रोग, शोक, भय व त्रास दूर करती हुई मुख पूर्वक गर्भ की वृद्धि करने लगी || २४ ॥ अव प्रभावती देवी को पीछे सुकोमल हस्तपांववाला, प्रतिपूर्ण पांचों इन्द्रियों व शरीरवाला, सब लक्षण
·
सवानव मास पूर्ण हुए व्यंजनादि गुणोंदाला
यावत् शशी समान सौम्याकारवाला, कांत, प्रिय, दर्शनीय और सुरूप ऐसा पुत्र रत्न का जन्म हुवा
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
१६१०