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शब्दार्थ में स० सर्वालंकारसे वि. रिभूषित तं० उत ग० गर्भ को प० नहीं अ० अतिशीत से अ. अतिऊष्ण स अ014
me अति तिक्त से अ० अतिकटुक से अ० अतिकषाय से अ० अति अंबट से अ० अति मधुर से उ० ऋतु में
भोग्य सु० सुख से भो० भोजन आ० आच्छादन गं० गंध म० माला से त• उस गगर्भ का हि हित मि०११ परिमित प० पथ्य ग० गर्भ पोषण दे० देश का काल आ० आहार करती वि विविक्त म० मृदु सशयन आ० आसन से ५० विरक्त सु० मुख म. मनोनुकूलता से वि० विहारभूमि में १० प्रशस्त दो दोहला सं०संपूर्ण दोहला स सन्मानित दो दोहला अ० अवमानित दो दोहला वि०विच्छिन्न दो दोहला वि.
तं गब्भं णाइसीतेहिं, णाइउण्हेहिं, णाइतित्तेहिं, णाइकडएहिं, णाइकसाएहिं, णाइअंबिलेहि, णाइमहुरेहिं उउन्भयमाणसुहेहिं भोअणच्छादणगंधमल्लेहिं जं तस्स गब्भस्स हितं मितं पत्थं गब्भपोसणं तं देसेय. कालेय आहारमाहारेमाणी विवित्तमउएहिं सयणासणेहिं
पतिरिक्कसुहाए मणाणुकुलाए विहारभूमीए पसत्थदोहला, संपुण्णदोहला, सम्माणिय भावार्थ
हुइ अतिशीत, ऊष्ण, तिक्त, कटक, कषाय, अम्बट व मधुर पदार्थ नहीं सेवने लगी. इस प्रकार ऋतु के प्रमाण से भोजन, वस्त्र, गंध, माला, अलंकार कि जो गर्भ को हित करनेवाले पथ्यकर हैं ऐसे भोजन से 4 गर्भ को पोषती हुई देश काल उचित आहार पानी करती हुई, विविध प्रकार के सुकोमल शैय्या सन भोगवती हुई, जैसे गर्भ को सुख होवे वैसे करती हुई, मनोज्ञ विहारं भूमि में विचरती हुई,
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती) सूत्र <aie
- अग्यारवा शतक का अग्यारहवा उद्देशा 94
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