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शब्दार्थ |
सूत्र
वार्थ
4 अनुवादक बालब्रह्मवारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
तुष्ट क० करतल जा० यावत् ए० ऐसा ६० बोले ए० ऐसे दे० देवानुप्रिय जा० यावत् तं उस सु० स्वप्न को स० सम्यक् प० ग्रहणकरे ब० बल २० राजा से अ० आज्ञापाइ हुइ णा० विविध म० मणि) २० रत भ० खचित जा० यावत् अ० उठकर अ० त्वरा रहित अ० चपलता रहित जा० यावत् ग० गति में जे जहां स० अपना भ० भुवन ते ० तहां उ० जाकर स० अपना भः भुवन में अ० प्रवेश कीया २३ ॥ ० त सा० वह प० प्रभावती दे० देवी डा० स्नान कीया क० कीया व० वलीकर्म जा० यावत्
हट्टतुट्टकरयल जाब एवं वयासी एवमेयं देवाणुप्पिया! जाव तं सुविणंसम्मं पडिच्छइ २ त्ता बलेणं रण्णा अब्भणुण्णाया समाणी णाणामणिरयणमंत्ति जाब अब्भुट्ठेइ, अतुरिय मचल जान गईए जेणेव सए भवणे तेणेव उवागच्छइ २त्ता, सयं भवणं अणुष्पविट्ठा ॥ २३ ॥ तणं सा पभावई देवी व्हाया कयबलिकम्मा जाव सव्वालंकार विभूसिया
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
| || २२ || प्रभावती देवी भी बलराजा से ऐसा सुनकर हृष्ट तुष्ट यावत् आनंदित हुई और बोली कि जो आपने कहा वह वैसे ही है यावत् इस तरह स्वप्न का अर्थ इच्छकर बल राजा की आज्ञा से नाना प्रकार के मणि रत्नोंवाला सिंहासन से उपस्थित हुई और शीघ्रता व मंदता रहित अपने भवन में गई ॥ २३ ॥ वहां प्रभावती देवीने स्नान किया, कोगले किये, तीलक मसादिक किये यावत् सर्वालंकार से विभूषित बनी।
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