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शब्दाथ माता जा० यावत् अ० अन्यतर ए० महास्वप्न पा० देखकर प० जागती है तु. तुमने दे० देवानुपिय ।
ए. एक म० महास्वप्न दि० देखा. जा. यावत् र० राज्यपति रा० राजा भ० होगा अ. अनगार भा०१ भावितात्मा ते. उस उ० उदार तु तुमने दे० देवी मु० स्वप्न दि० देखा ति ऐसा करके प० प्रभावती देवी को ता. उस इ० इन दो० दमरी वक्त तक तीसरी वक्त अ. कहा ॥ २२॥त तव सा. वह प्रभावती दे देवी ३० वलराजा की अं० पाम ए. यह अर्थ सो० सुनकर णि अवधारकर ह० हृष्ट तु० - बावत्तरिं सव्वसुविणा ॥ तत्थणं देवाणुप्पिए! तित्थयरमायरोवा चक्कवटिमायरोवा
तंचव जाव अण्णयरं एंगं महासुविणं पासित्ताणं पडिबुझंति ॥ इमेणं तुम्हे देवाणुप्पिए ! एगे महासुविणे दिढे जाव रज्जवईराया भविस्सइ, अणगारेवा भावियप्पा तं
उरालेणं तुम्हे देवी! सुविणे दिटेत्तिकटु, पभावति देवि ताहिं इट्ठाहिं दोच्चंपि तच्चंपि
- अणुबूहइ ॥ २२ ॥ तएणं सा पभावईदेवी बलस्सरण्णो अंतियं एयमटुं सोचाणिसम्म भावार्थ की माता तीर्थकर व चक्रवर्ती गर्भ में आते समय चौदह स्वप्न देखती हैं यावत् तुमने इन में से एक स्वप्न
देखा है इस से तुम को सवानव मास पूर्ण हुवे पीछे एक पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी. उन की बाल्यावस्था 10 जब पूर्ण होगी तब वह अनेक राजाओं का राजा होगा अथवा भावितात्मा अनगार होगा. अहो देवी !
इस से तुमने अच्छा स्वप्न देखा है ऐसा कहकर प्रभावती देवी को दो तीनवार मिष्ट वचन से बोलाइ
पण्णति ( भगवती ) सूत्र
48अग्यारवाशतकका अग्यारवा उद्देशा74