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शब्दार्थ बा० बहोत्तर स० सर्व सु० स्वप्न दि० देखे त. तहां दे० देवानुप्रिय ति तीर्थंकर की मा० माता च०*
चक्रवर्ती की मा० माता ति तीर्थकर च. चक्रवर्ती ग• गर्भ में व० व्यतीक्रम ते ए० इन ती. तीस म. महास्वप्नमें से च० चौदह म० महास्वप्न पा० देखकर प० जागती हैं ग० गज उ० वृषभ सी० सिंह, अ० लक्ष्मी दा० माला स० चंद्र दि० सूर्य झ० ध्वजा कुं० कुंभ प० पद्य स० सरोवर सा० सागर वि० विमान भ० भवन र० रत्नोचय सि. अग्निशिखा वा. वासुदेवकी माता वा वासुदेव ग. गर्भ में व०१
तीसं महासुविणा बावत्तीरं सव्वसुविणा दिट्ठा. तत्थणं देवाणुणिया ! तित्थगरमाय1 रोवा चक्कवादिमायरोवा, तित्थगरंसिवा चक्कर्टिसिवा गम्भवकममाणंसि एतसिं तीसाए ET महासुविणाणं इमे चउद्दस महासुमिणे पासित्ताणं पडिबुझंति तं गयउसमसीह अभिसेय
दामससी दिणयरं झयकुंभ, पउमसरसागर विमाण (भवण) रयणच्चुयीसहिच ॥ १ ॥
वासुदेवमायरोवा वासुदेवंसि गन्भं वक्कममाणंसि एसिं चउद्दसहं महासुविणाणं भावार्थ: करने लगे. अहो देवानुप्रिय ! हमारे स्वप्न शास्त्र में बीयालीस सामान्य स्वप्न व तीस महास्वम ऐसे
सब मीलकर बहोत्तर स्वम कहे हैं. जब तीर्थंकर व चक्रवर्ती अपनी माता के गर्भ में आतेहैं तब उन की
माता उन तीस महास्वप्न में से चौदह स्वप्न देखकर जागृत होती है. उन के नाम. १ हस्ती २ वृषभ 15 १३ सिंह ४ अभिषेक (लक्ष्मी का) ५ दो पुष्पमाला ६ चंद्र ७ सूर्य ८ वजा ९ कुंभ १० पय सरोवर
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमालक ऋषिजी+
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी चालाप्रसादजी*