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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
4988 पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ते ( भगवती सूत्र 48
उस में ई०
पूछा अर्थ वि०
भ० होगा || २० || त० तब सु० स्वप्न लक्षण पा० पाठक व० बलराजाकी अं० पास ए० इस अर्थ को सो० सुनकर णि० अवधारकर ह० हृष्ट तु तुष्ट तं० उस सु० स्वप्न को ओ० ग्रहणकरे तं बुद्धिमें प० प्रवेशकरे तं० उस सु० स्वप्न का अ० अर्थावग्रह क० करे ते० वे अ० अन्योन्य स० साथ सं० मंचालनकर त० उस मु० स्वप्न का ल० प्राप्त कीया अर्थ ग० ग्रहण किया अर्थ पु० निश्चय किया अर्थ अ० जाना अर्थ व० बलराजा की पु० आगे सु० स्वप्न का अर्थ उ करते ए० . ऐसा व० बोले दे० देवानुप्रिय अ० हमने सु० स्वप्न शास्त्र बा० बीयालीस सु० स्वप्न ती तीस म० महास्वप्न ) तणं ते सुविण लक्खण पाढगा बलस्स: रण्णो अंतिए एयमट्ठे सोच्चा णिसम्म तं सुविणं ओगिण्हंति, तं ईहं पविसंति २ त्ता तस्स सुविणस्स अत्थोग्गहणं करेंति २ सा, ते अण्णमण्णेणं सद्धिं संचालेति २ त्ता, तस्स सुविणस्स लट्ठा गहिया पुच्छियट्ठा, विणिच्छियट्ठा, अभिगयद्वा बलस्स रण्णो पुरओ सुविणसत्थाइं उच्चारेमाणे २ एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं सुविणसत्यंसि बायालीसं सुविणा की पास ऐसा सुनकर हर्षित हुए, और उस स्वप्न को अच्छी तरह समझ लिया, उस पर विचार किया, अर्थ ग्रहण किया, और परस्पर संचालन (पृच्छा ) किया. फीर उस स्वप्न का अर्थ की प्राप्ति करनेवाले, पृच्छा करनेवाले, निश्चितार्थवाले, विनिश्चितार्थवाले ऐने स्वम पाठक बल राजा की आगे स्वप्न का अर्थ
4 अग्गरवा शतक का अंग्याखा उद्देशा 50-48
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