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________________ शब्दार्थ wwwwwwww A6A 400 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी मुख भ० भद्रासनपे नि बैठे त तब से वह ब० बलराजा प• प्रभावती दे० देवीको ज. पडदा में ठा० बैठाकर पु० पुष्प फ० फल से ५० पूर्ण ह० हाथ प० बहुत वि० विनय से ते० उन सु० स्वम लक्षण 10 पाठक को एक ऐसा व. बोला ए. ऐसे दे०देवानप्रिय प० प्रभावती दे० देवी अ.आज तं० उम ता. तादृश वा गृह में जा. यावत् सी. सिंह मु० स्वप्न मु० स्वप्न में पा० देखकर १० जागृत हुइ दे० देवानुप्रिय ए० इस उ० उदार जा० यावत् के० क्या मजाना क० कल्याणफल वि. वृत्ति वि. विशेष सम्माणिया समाणा पत्तेयं २ पुव्वणत्थेसु भद्दासणेसु णिसीयंति॥ तएणं से बलेराया षभावइं देवि जवणितरियं ठावेइ २ त्ता, पुप्फफल पडिपुण्णहत्थे, परेणं विणएणं ते. सुविण लक्खण पाढए एवं वयासी एवं खलु देवाणुप्पिया ! पभावई देवी अज तसि तारिसगंसि वासघरंस जाव सीहे सुविणं सुविणे पासित्ताणं पडिबुढा;तणं देवाणुप्पिया! . एयरस उरालस्स जाव के मण्णे कल्लाणे फलवित्तिाविससे भविस्सइ ? ॥ २० ॥ ढके हुवे सिंहासनपे बैठे. प्रभावती देवी को भी उम पडदे के अंदर बैठने को कहा. फोर पुष्प फल से परिपूर्ण हस्त सहित अतिशय विनय पूर्वक उन स्वम लक्षण पाठक को एसा कहा अहो देवानु प्रय ! आज प्रभावती देवीने पुण्यवंत को योग्य ऐसे आवास में यावत् सिंह को अपने मुख में प्रवेश करता हुवा स्वम में देखा. इस स्वप्न का हम को क्या कल्याणकारी फल होगा ? ॥ २० ॥ स्वप्न लक्षण: पाठकने बल राजा प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*. भावार्थ ann-ram www. m
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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