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________________ | ब्दार्थ १० मंगल मु. शिर स० अपने गे• गृह से णि. नीकलकर ह• हस्तिनापुर ण० नगर की म० मध्य में जे० जहां ब० बलराजा को भ•भुवन अवतंसक के १० प्रतिद्वारपर ए०इकठे मे० मीलकर जे०जहां वा बाहिर की उ०. उपस्थान शाला जे. जहां व० बलराजा ते. तहां उ० आकर क० करतल ब. बलराजा को ज०. जय वि. विजय से व वधाये ॥ १९ ॥ त तब ते वे सु. स्वप्न लक्षण पा० पाठक ब० बलराजा से वं० वंदन कराये पू० पूजन कराए स० सत्कार कराए स० सन्मान कराए हुवे प० प्रत्येक पु० पूर्वाभि मझेणं जेणेव बलस्स रण्णो भवणवरवडिसए तेणेव उवागच्छति २ त्ता भवणवर वडिसए पडिदुवारंसि एगओ मेलंति २ त्ता जेणेव बाहिरिया उवट्ठाण साला जेणेव बले राया तेणेव उवागच्छंति २ ता करयल बलं रायं जएणं विजएणं वद्धाति ३ ॥ १९ ॥ तएणं ते सुविण लक्खण पाढगा बलेणं रण्णा बंदियपूइयसकारिय शरीर को वस्त्रालंकार से विभूषित किया. अर्थसिद्धि के लिये सर्पव हरिताल रूप लक्षणवाले मंगल मस्तक में धारन किये और अपने २ गृह से नीकलकर हस्तिनापुर नगर की बीच में होकर. बल राजा के भवन की तरफ जाने लगे और उन के प्रतिद्वार पर एकत्रित होने लगे. फीर वहां से सब उपस्थानशाला में बल राजा की समीप जाकर बल गजा को 'जय हो विजय हो' ऐसे शब्दों से वधाये ॥ १९॥ बल राजाने उन सब स्वप्न लक्षण पाठक को वंदना, पूजा, सत्कार सन्मानादि किये. और वे सब पहिले के 4887 पंचमांग विवाह पण्णचि ( भगवती ) मूत्र 4-887 828 अग्यारवा शतक का अग्यारवा उद्देशा वाथे
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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