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शब्दार्थ पास से प० नीकलकर सि० शीघू तु० त्वरित च० चपलता से चं. चंडगति से वे. वेगसे 11
हस्तिनापुर न० नगर की म० मध्य से णि० जाकर जे० जहां ते० उन मु० स्वप्न ल• लक्षण पा० पाठक के गि० गृह ते. तहां उ० जाकर ते० उन सु० स्वम लक्षक पा. पाठक के स० बोलावे ॥१८॥ त० तब ते वे सु० स्वप्न लक्षण पा० पाठक ब. बलराजा के को. कौटुम्बिक पु० पुरुष से स० बोलाये हुवे ह°3 हृष्ट तु. तुष्ट हा स्नान किया जा० यावत् स. शरीर सि. सिद्धार्थक ह. हरताल से क० किये
वेइयं हत्थिणापुरं णयरं मझं मझेणं णिग्गच्छंति २ त्ता जेणेव तेसिं सुविण लक्षण पाढगाणं गिहाइं तेणेव उवागच्छंति २ त्ता, ते सुविण लक्खण पाढए सहावेति । ॥ १८ ॥ तएणं ते सुविण लक्खण पाढगा बलस्स रण्णो कोडुबियपुरिसेहि सदाविया समाणा हट्ठ तुट्ठा व्हाया कयबलिकम्मा जाव सरीरा, सिद्धत्थगहरियालिया,
कयमंगलमुडाणा सएहिं २ गेहेहिता णिग्गच्छति २ त्ता, हत्थिणापुरं णयरं मझं करनेवाले व विविध प्रकार के शास्त्र में कुशल ऐसे स्वप्न पाठक को बोलावो. वे कौटुम्बिक पुरुषों की बल राजा की पास ऐसा मुनकर वहां से नीकलकर शीघ्रता, चपलता सहित हस्तिनापुर नगर की मध्य में
होकर स्वम पादक की पास गये और उन को राजसभा में आने का कहा ॥ १८॥ स्वम लक्षण पाठक सबल राजा के कौटुम्बिक पुरुषों से राजसभा में आने का मुनकर बहुत हर्षित हुवे. स्नान किया यावत् अपने
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
•प्रकाशकं-राजाबहादुर लाला मुकदेव
(सहायजा