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ब्दार्थ आभ्यंतर ज० पडदा अं० आच्छादित करके णा विविध म० पणि र. रत्न भ० समान चि. चित्रित ।
० अ० निर्मल मि• मृदु म० ममूर गो० आच्छादित से श्वेत वस्त्र ५० बीछाकर अ० अंगको मु० मुखX Yफा० स्पर्श सु० मृदु प. प्रभावती दे० देवी केलिये भ० भद्रासन र० रचवाकर को० कौटुम्बिक पुरुष को
स. बोलाकर एक ऐसा व० बोले खि• शीघ्र दे. देवानुप्रिय अ० आठ अंग म० महानिमित्त सु. सूत्र। अ० अर्थ के पा० धारक वि. विविध स० शास्त्र कु. कुशल सु० स्वप्न ल० लक्षण पा० पाठक स० बोलावो त तब ते. वे को कौदम्बिक पुरुष जा. यावत् प० सुनकर ब. बलराजा की।
णाणामणिरयण भत्ति चित्तं अत्थरयमिउमसूरगोच्छगं सेयवत्थपच्चुत्यं अंगमुह फासियं सुमउय पभावईए देवीए भद्दासणं रयावेइ २ त्ता; कोडुबियपुरिसे सहावेइ २ त्ता,एवं बयासी खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अटुंग महानिमित्त सुत्तत्थधारए विविहसत्थकुसले सुविणलक्खण पाढए सद्दावेहतएणं ते कोडुबिय पुरिसा जाव पडि
सुणेत्ता बलस्स रण्णो अंतियाणो पडिणिक्खमंति २ ता, सिग्धं तुरियं चवलं चंडं। वार्य मध्य भाग में खींचाया. फीर वहां पर विविध प्रकार के मणि रत्नों से चित्रित, निर्मल ममुर समान 14
कोमल, श्वेत वस्र से ढका हुवा एक सिंहासन प्रभावती राणी को बैठने के लिये बनाया. फीर कौटुम्बिक पुरुष को बोलाकर ऐसा कहा अहो देवानप्रिय ! अष्टांग महा निमित्त · रूप सूत्र अर्थ को धारन |
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती ) सूत्र 438
428 अग्यारवा शतक. का अग्यारवा उद्देशा 498
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