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________________ शब्दार्थ - अनुवादक-बालब्रह्मचारी मान श्री अमोलक ऋषिनी नरपति म० स्नानगृह से प: नीकलकर जे० जहां बा० बाहिर की उ० उपस्थान शाला उ० आकर सी० सिंहासनपे पु० पूर्वाभि मुख से णि बैठे अ० अपनी उ० ईशान कौन में अ० आठ भ० भद्रासन से श्वेत वस्त्र प. बीछाये हवे सि० सिद्धार्थ क. कृत मं० मंगल उ० उपचार र० रचाकर अ. अपनी अ० नजदीक णा० विविध म: मणि र० रल मं० मंडित अ० अधिक पे० देखने योग्य म• मोंघे व प्रधान ५० वस्त्र भ० भांक्तिशत चि चित्रित ई० ईहा मृग उ० पभ भ० भांति चि० चित्रित अ० क्खमइ २ त्ता जेणेव बाहिरिया उबटाणसाला तेणेव उवांगच्छइ २ त्ता, सीहासण वरंसि पुरत्थाभिमुह णिसीयइ २ त्ता, अप्पणो उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए अट्ठभद्दासणाई सेयवत्थपच्चुत्थयाइं,सिद्धत्थगकयमंगलोक्याराइं रयावेइ रयावेइत्ता अप्पणोअदूरसामंते णाणामणिरयण मंडियं अहियपेच्छणिज महग्यवर पट्टणुग्गयं सहपट्टभत्ति सयचित्तत्ताणं इहामियउसभभत्तिचित्तं, अभितरियं जबणियं अंछावेइ २ ता शशि समान प्रियदर्शनीय नरपाले मज्जनगृह से नीकलकर बाहिर उपस्थानशाला में आये. वहां सिंहासन पर पूर्वाभिमुख बठकर आनी ईशान कौनमें श्वेत वस्त्रसे ढकेहुवे और अर्थसिद्धि केलिये मांगलिक उपचारवाले ऐसे आठ सिंहासन बनाये. और अपनी पास अनेक मणि रत्नों से जडा हुवा बहुत देखने योग्य मूत का + वस्त्र, शाहमृग, मृग, वृषद वगैरह अनेक चित्रों विचित्रों से चित्रित ऐसा पडदा आभ्यंतर आस्थान मंडप के * प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी * भावाथ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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