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शब्दार्थ
सूत्र
भावार्थ
अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
मो०
धार्मिक क० कथा से स० स्वप्न जागरणा प० जागी दि० विचरती है || १६ || त० तब से वह ० बलराजा को० कौटुम्बिक पुरुष को स० बोलाकर ए० ऐन वर बोले खि० शीघ्र दे० देवानुप्रिय अ० आज स० सविशेष बा० बाहिर की उ० उपस्थान शाला गं० गंधोदक सि० सिक्त स० समार्जित उपलिस सु० सुगंध प० प्रवर पं० पंचवर्ण पु० पुष्प उ० उपचार क कलित का कृष्णागरु व प्रधान (कुं० कुंदवृक्ष जा० यावत् गं० गंधवाला क० करो का करावो क० करके सी० सिंहासन र० रचो त० संबद्धाहिं सत्याहिं मंगल्लाहिं धम्मियाहिं कहाहिं सुविण जागरियं पडिजागरमाणी २ विहरइ ॥ १६ ॥ एणं से बलेराया को डुबियपुरिसे सदावइ २ ता एवं वयासी खिप्पामेव भो देवाप्पिया ! अज्ज सविसेसं बाहिरियं उवट्ठाणसालं गंधोदयसित्त सुइयसंमज्जिओबलित्तं, सुगंधपवरपंचवण्णपुप्फोत्रयारकलियं कालागरुपवर कुदरुक्क जाव गंधव भूयं करेह कारवेह करिता कारवित्ताय सीहासणं रयावेह २ त्ता तमेतं गुरुजन संबंधी मांगलिक प्रशस्थ धार्मिक कथा से स्त्रम जागरणा जागती हुई मैं विचरूं ॥ १६ ॥ फीर आज्ञाकारी पुरुषों को बोलाकर बलराजा कहने लगे कि अहो देवानुप्रिय ! आज बाहिर की उपस्थानशाला (सुगंधित पानी के छिटकाव से स्वच्छकरो, गोवर से लिपो, सुगंधि पंच वर्ण के पुष्पों का ढंग करो, और कृष्णागुरु कुंदरुक यावत् सुगंधित द्रव्य से मघमघायमान करो और दूसरे की पास करावो. फीर वहां २
* प्रकाशक - राजवहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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