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शब्दार्थ तु तुम व० कहते हो तिः ऐसा करके तं० उस सु० स्वप्न को स० सम्यक् प० अंगीकार करके ब० 00
बल र० राजा से अ० आंज्ञामीली हुई णा विविध म० मणि र रत्न भ० भरे हुवे भ० भद्र आसन से म० उठी अ० स्वरा रहित जा. यावत् ग० गतिसे ज० जहां स. अपनी स० शय्या ते. तहां उ० आकर स० शय्या में णि? बैठी ए. ऐसा व बोली मा० मत ए. यह उ. उत्तम प० प्रधान में मांगलीक मुक स्वप्न अ० अन्य पा० पापप्ज से प० हणावेगा गुरु गुरुजन सं० संबद्ध प० प्रशस्य मं० मांग वीक ध० __सम्म पडिच्छइ २ त्ता, वलेणं रण्णा अब्भणुण्णायासमाणी णाणामणिस्यणभत्ति
चित्ताओ भद्दासणाओ अब्भुटेइ २ त्ता अतुरिय मचवल जाव गईए जेणेव सए सयणिज्जे तेणेव उवागच्छइ २ त्ता, सपाणिजांस णिसीयति २ त्ता एवं वयासी मामेसे
उत्तमे पहाणे मंगल्ले सुमिणे अण्णेहिं पावमुभिणेहिं पडिहम्मिरसइत्तिकटु, देवगुरुजण भावार्थ
5 वचन श्रवण कर प्रभावती देवी हर्षित हुई, आनंदित हुई और दोनों हाथ जोडकर ऐना बोली कि अहो
देवानुप्रिय ! जो आप कहते हो यह ऐसे ही है, यह तथ्य है, यह विशेष तथ्य है, यह शंकाराहित है,
यह इच्छित है, यह प्रतिच्छित है. इस तरह स्वम को इच्छ कर वल राजा की आज्ञा से विविध प्रकार के 4 *माण रोकाला भद्रासन से उठकर शीघ्रता व चपलता रहित अपने शयनासन की पास आई. शयनासन में
सोती हुई ऐसा बोली कि अन्य खरार पाप स्वम से ऐसा प्रधान मंगलिक व उत्तर कम हणावे नहीं इस से
विवाह पण्पत्ति (भगवती) सूत्र 488
* <8. अग्यारवा शतक का अग्यारहया उद्देशा
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