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शब्दार्थ शरीर 30 रोमांक्ति तं. उस सु० स्वम को उ० ग्रहणकर ई० बुद्धिम से प० प्रवेशकरे अ० अपी
मा० स्वाभाविक म० मतिपूर्वक बु० बुद्धिविज्ञान से त० उस मु. स्वप्न का अ० अर्थ अ० ग्रहण क• कर के प० प्रभावती दे देवी को इ० इष्ट जा. यावत् मं मंगल मि० मृदु म० मधुर स. श्रीरूप मं० बोलते
ए. ऐमा व० बोले उ० उदार तु• तुमने दे० देवी सु० स्वप्न दि० देखा क कल्याणकारी तु• तुमने दे. सूत्र !
सुरभिकुसुमचुचुमालइयतणुयऊसवियरोमकूवे त सुमिण उगिण्हइ २ ता ईहं पविसइ २ त्ता अप्पणो साभाविएणं मइपुब्बएणं बुद्धिविण्णाणेणं तस्स सुविणस्स। अत्थोग्गहणं करेइ २ त्ता पभावतिं देविं ताहिं इ8हिं जाव मंगल्लाहिं, मिउमहुरसस्सिरीयाहिं संलबमाणे २ एवं वयासी उरालेणं तुम्मे देवी? सुविणे दिटे, कल्लाषणं स्वप्न में देखकर मैं जागृत हुई आप की पास आई हूं. अब अहो देवानप्रिय ! ऐना उदार यावत् महा
सप्न का मुझे कैसा कल्याणकारी फल प्राप्त होगा ? बल राजा प्रभावती राणी में ऐसा अर्थ सुरहैकर हृष्ट तुष्ट यावत् अनंदित हुआ. मेघ की धारा से हणाया हुवा कदम्ब वृक्ष जैसे विकसित होता है
वैने ही इन के रोमांकूर विकसित हुचे. राणीने कहे हुवे स्वप्न को ग्रहण किया, उस का हृदय में विचार किया, और आभिनिवाधिक ज्ञान व उत्पानादि बुद्धिमे उन स्वप्न के फल को निश्चित किया. इस तरह स्वप्न का अर्थ ग्रहण कर प्रभावती राणी को इष्ट, कांत, प्रिय व मनोज्ञ वचन से कहने लगे कि अहो,
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पंचसाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती
> अग्यारवा शतकका अग्णरहका उद्देशा 88
भावाथे