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शब्दार्थ शेरशा में सा० अंग सहित तं तैसे जा. यावत् णि• अपना व० बदन में अ० प्रवेश करता सीः सिंहको
सुः स्वमने पा० देखकर प० जागृत हुई दे० देवानुप्रिय. ए. इस उ० उदार जा० यावत् म० महास्वान का के क्या म० मानाजावे क. कल्याण फ० फलवृत्ति वि. विशेष भ० होगा त० तब से वह ब० बलराजा ५० प्रभावती दे० देवीकी अं. पास ए. इस अर्थ को मोर सुनकर णि अवधार कर ह० हृष्ट तु ० तुष्ट जा. यावत् हि खुशहुवा धा० धाराहत णी• कदम्द वृक्ष के सु० सुगंधित कु० कुसुम चुं० पुलकित त.
बलं रायं ताहि इवाहिं कताहिं जाव संलवमाणी २ एव वयासी एवं खलु अहं देवाणुप्पिया अज तंसि तारिसगंसि सयणिज्जसि सालिंगण तंचेव जाव णियगवयणमति
वयंतं सीहं मुविणं पासित्ताणं पडिबुद्धा ॥ तंणं देवाणुप्पिया! एयस्त उरालस्स जाव भावार्थ
महासुमिणरस केमण्णे कलाणे फलवित्तिविसे से भविस्मइ ? तएणं से बले राया
पभावईए देवीए अंतिए एयमढ़े सोचा णिसम्म हतुट्ठा जाव हियए धाराहयणीवजडित व अनेक चित्रों में चित्रित ऐसे सिंहासन पर बैठने की राणी को आज्ञा दी. राजा की आज्ञानुसार राणी सिंहासन पर बैठी और मार्ग गमन से प्राप्त परिश्रम का निवारन किया. फीर अक्षुब्ध हृदय मे
हस्तद्वय नोकर इष्टकारी यावत् मंजुल भाषा से वार्तालाप करती हुई ऐसा बोली कि अहो देवानुप्रिय! आज +में पुण्यवन्त गोव को योग्य शैय्या में सोती हुई थी यावत् मेरे मुरत्र में प्रवेश करता हुवा एक सिंह को
40 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायनी ज्वालाप्रसाद *