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शब्द।
सूत्र
भावार्थ
4+ पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र 4080
वल रा० राजाकी स० शय्या ते० तहां उ० आकर व० बलराजा को इ० इष्ट कं० कांत पि० प्रिय म० मनोज्ञ म० मनाम उ० उदार क० कल्याण सि० सुखरूप ध० धन्य मं० मांगलिक स० अच्छे मि० मृदु म० मधुर मं० मंजुल गि० वाणी से सं० बोलती प० जागृतकर बं० वल र० राजा से अ० आश पाइहुई णा ० विविध म० मणि र० रत्न भ० रचे हुवे सी० सिंहासनपे णि० बैठकर आ० आश्वास लेती [वि० विश्राम करती सु० सुखासनपर व० बैठी हुई ब० बलराजा को इ० इष्ट कं० कांत जा० यावत् सं० बोलती ए० ऐसा व० बोली ए० ऐसा ख० निश्चय अ०मैं दे० देवानुप्रिय अ० आज तं० उस ता० तैसी स० गच्छइ २त्ता, बलं रायें ताहिं इट्ठाहिं कंताहिं पियाहिं मणुष्णाहिं मणामाहिं उरालाहिं कलाणाहिं सिवाहिं धण्णाहिं मंगलाहिं सस्सिरीयाहिं मिउमहुरमंजुलाहिं गिराहिं संवाणी २ पडिबाइ २ त्ता, बलेणं रण्णो अब्भणुष्णायासमाणी णाणामणिरयणभत्तिचित्तंसि सीहासांसि णिसीयइ २ त्ता, आसत्था वीसत्था सुहासणवरगया (मान उसका हृदय हुआ और स्वप्न को धारन कर शैय्या में से खडी हुई. शारीरिक व मानसिक {चपलता रहित असंभ्रांत बनकर राजहंस समान गति से चलती हुइ दलराजा के शयनगृह में आई और (बलराजा को इष्ट, मनोहर, प्रीतिकारी, मनोज्ञ, अभिराम, उदार, कल्याणकारी, उपद्रव रहित, मंगलिक, मृदु, मधुर, व मंजुलवाणी से बोचकर जागृत किया. बल राजाने जागृत होकर अनेक प्रकार के रत्नों से
अग्यारवा शतक का अग्याखा उद्देशा 4380
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