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शब्दार्थ |
सूत्र
भावार्थ
409 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
लीला करता जं० बडाइ करता न० नभतल से उ० उतरता नि० अपना व० वदन में प० प्रवेश करता तं० उस सी० सिंहको सु० स्वम में पा० देखकर प० जागृत हुई || १४ || त० तब सा० वह पठमभावती दे० देवी ए० इसरूप उ० उदार जा० यावत् स० श्रीरूप म० महास्वप्न सु० स्वप्न में पा० देखकर प० प० जागृत होती ह० हृष्ट जा० यावत् हि० खुशहुइ धा० धारासे हणाया क० कलंत्र पुष्प जैसे स० विकसित रो० रोमकूप तं० उस सु० स्वन को उ० ग्रहणकर स० शय्या से अ० उठकर अ० त्वरा रहित अ चपलता रहित अ० असंभ्रम अ० विलम्व रहित रा० राजहंस स० सरिखी ग० गति से ज० जहां ब० लाओ उवयमाणं नियत्रयणं पतितं तं सीहं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धा ॥ १४ ॥ तणं सा पभावई देवी अयमेयारूवं उरालं जाव सस्तिरीयं महासुविणं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धासमाणी हट्ट जाव हियया धाराहयकलंबपुप्फगंपिव समूससियरोमकूवा तं सुविणं उहि उगिव्हित्ता. सयणिजाओ अब्भुट्ठेइ २ ता अतुरियमचवलमसं भताए अविलंवियाए रायहंससरिसीए गईए जेणेव बलस्स रण्णो सयणिजे तेणेव उवाउस प्रभावती राणीने स्वप्न में देखा और इस तरह स्वप्न देखकर शीघ्र जागृत हुई. ॥ १४ ॥ ( प्रभावती देवी इस प्रकार का उदार, प्रधान, व कल्याणकारी महास्वम देखकर जागृत होते अत्यंत हर्षित हुई मेघ की धारासे हणाया हुवा कदम्ब वक्ष का पुत्र जैसे विकसित होता
तब वह
ही हृदय में वैसे विकसाय
* प्रकाशक- राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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