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________________ दार्थ लष्ठ र रक्त उ० उत्पल प० पत्र म. मृदु सं० सुमार ना० तालु जी जीव्हा मूः मूषाभाजन में ग०3A रहा हुवा प; प्रधान क० मुवर्ण ता० तपायाहुवा आ० आवर्त करता व० वृत्त त० तडित जैसे वि. विमल } सहिस्र न० नयन वि० विशाल पी. स्थूल उ० उन ५० प्रतिपूर्ण वि विपुल वं. स्कन्ध, १८८५ मि० मृदु वि० सफेद मु० सूक्ष्म ल. लक्षण ५० प्रशस्त वि. विस्तीर्ण के. केशवली सो शोभित F० छिन सुः सुनिति सु• सुजात अः आस्फोटित लां० लांगुल सो० सौम्य सो० सौम्याकार ली. १ सुकुमालतालुजीहं मूसागयपवरकणगतावियआवत्तायतबहतडियविमलसरिसनयणं विसा. है लपीवरोरुपडिपुण्णविउलखंधं मिउविसयसहमलकखणपसत्थविच्छिण्णकेसराडोव सोभियं । ऊसियसुनिम्मियसजायअप्फोडियलांगलं सोमं सोम्राकारं लीलायंतं जंभायंत नय भावार्थ कार, स्थूल, श्रेष्ट व तीक्ष्ण दाहों युक्त मुखवाला, संस्कारित जात्य कमल समान कोमल व प्रमाणोपेत शोभ निक व मनोज्ञ आष्टवाला, रक्त कमल के पतन समान सकुमार तालु व जीव्हा वाला, मूवर्ण को मूषा में रखकर तप्त किया फीर वह चक्रखावे उस के जैसे वृत्त, तडित समान विमल लोचनवाला विस्तीर्ण स्थूल 2 जंघा वाला, परिपूर्ण स्कंधवाला, कोमल, श्वत, प्रशस्त व विस्तीर्ण केसग वाला, ऊंचाकिया हुआ, अच्छी 4 तरह नीचा मुख करके म्हा हुवा शोभनिक, व भूमिको आस्फालता हुआ लांगूलवाला, सौम्य व सौम्या on कार सिंह लीला व क्रीडा करता हुवा आकाश तल में से नीचे उतरकर अपने मुख में प्रवेश करता हुवा | पंचमांग विवाह पण्णाति ( भगवती ) सूत्र 86 48502 अग्यारखा शतकका अग्यारवा उद्दशा 40
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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