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शब्दार्थ
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलंक ऋषिजी +
काल में सु० सूती जा० जागती ओ० चलायमान होती ए. इसरूप उ० उदार क०कल्याणकारी सि०मूख रूप ध० धन्य मं० मंगलकारी स. श्री वाला म. महास्वप्न पा०देखकर प० जागृत हुइ हा हार २० रजत खी० क्षीरसागर म० चंद्र कि० किरण द. उदक र० रजत म. महाशैल पं० पांडुर र० रमणिय से पि० देखने योग्य थि० स्थिर ल० लष्ठ ५० पक्राष्ट व० वृत्त पी० पीवर सु० मुश्रिष्ठ वि० विशिष्ठ ति० तीक्ष्ण दा० दांत वि० विवृत मुख प० परिकर्मिन क० कमल को० कोमल मा० प्रमाण सो.. शोभते ल.
ओहीरमाणी अयमेयारूवं उरालं कल्लाणं सिवंधण्णं मंगल्लं सस्सिरीयं महासुविणं पासिताणं पडिबुद्धा तं० हाररययखीरसागर ससंककिरण दगरयय महासेल पंडुरतरोरु रमणिज पिच्छणिजं, थिरलट्ठपउट्ठ वट पीवरसुसिलिट्ठ विसिट्ठ तिक्खदाढा विडंवि
यमुहं परिकम्मिय जच्चकमल, कोमल माइय सोभंत लट्ठउटुं रत्तुप्पल पत्तमउय के समय में अच्छाअच्छा दनवाला, रक्तवस्त्र से ढका हुवा, सुरम्य, व शरीर प्रमाण पर्यंक पर वुलगार, रूय, बूर, माखण; व तूल के स्पर्श समान कोमल स्पर्शवाली व सुगंधित पुष्पों के चूर्णीवाली शैय्या में अर्धरात्रि में अतिशय नहीं सोते व अतिशय नहीं जागते एक बडा प्रधान कल्याणकारी महा स्वप्न देखकर जागृत हुइ. अब स्वप्न का वर्णन करते हैं मोती का हार, चांदी, क्षीर समुद्र, चंद्रमा के किरण, पानी के कण व बांदी का चैतात्य पर्वत समान अतिशय उज्वल, मनोहर व प्रेक्षणीय, स्थिर व मनोज्ञ कलाई तथा. वर्तुला
प्रकाशक राजाबहादुर लाला दुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावार्थ
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