SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1613
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ शब्दार्थ ५८३ Tag पंचमांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती) गंधवाला ग० गंधगुटिका सरिखी तं० उस ता० तादृश स० शय्या में सा० शरीर प्रमाण शय्या में उ०१, दोनों बाजु वि० ओसी से दु० दोनों उ० उन्नत म० मध्य में गं० गंभीर गं० गंगातट की वा० बालु उ०% मुकोमल शरीर ओ० अच्छा खो० सफेद दु० वस्त्र पट प० अच्छादन सु० सुरचित र० · वन स० रक्त वस्त्र सं० संवृत सु० सुरम्य आ. चर्म का वस्त्र रू. रूत बू० बूर ण. नवनीत तु. तूल फा० स्पर्श सु०१४ सुगंध व प्रधान कु० कुसुम चु० चूर्ण स० शयन उ० उपचार के० कंलित अ० अर्ध २० रात्रि का० तंसि तारिसगंसि सयणिजंसि सालिंगणवट्टीए उभओ विव्वोयणे दुहओ उण्णए मज्झे णयलुगंभीरे गंगापुलिण वालुय उद्दाल सालिसए, ओयविय खोमिय दुगुल्लपट्ट पडिच्छ__यणे सुविरइयरयत्ताणे रत्तंसुयसंबुडे सुरम्म आईणगरूय बूरणवणीय तुल्फासे सुगंध वरकुसुम चुण्णसयणोक्यारकलिए अद्धरत्तकाल समयंसि सुत्तजागरा ओहीरमाणी मणियों व कर्केतनकादि रत्नों से उज्वल, बहुत सम भूमि भागवाला, पांच वर्ण व सरस सुगंध युक्त पुष्प पुंज की पूजासे सहित, काला अगर व श्रेष्ट चौड, सीला वगैरह धूप मे मघमघायमान, श्रेष्ट सुगंध से सुवामित, और गंध द्रव्य गुटिका समान ऐसे गृह में शिर व पांव दोनों पास ओसीसावाला, दोनों तरफ ऊंचा बीच में चीचा गंभीर, गंगा नदी के तट की उपर की वालु समान मृदु, अच्छी तरह से पकाया हुवा कपासमय वस्त्र अथवा अतसीमय वस्त्र सो युगल की अपेक्षा से एक पटोपट आच्छादनवाला, भोग अवस्था । 48 अग्यारना शतकका अग्यारवा उद्देशा 438 भावार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy