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शब्दार्थ
भावार्थ
अ० अद्धाकाल ॥ ४-१२ ॥ अ० है इं० हां अ० है से वह के० कैसे मं०
एए किं
० भगवन् प० पल्योपम सा० सागरोपम ख० क्षय अर अपचय } भगवन् ए० ऐसा त्रु० कहा जाता है अ० ए० इन प० पल्योपम मा० सागरोपम का जा० यावत् अ० अपचय सु० सुदर्शन ते उस काल ते० उस समय { में ह० हस्तिनापुर न० नगर ब० बल रा० राजा हो० था० व० वर्णन युक्त त० उस ब० बल २० राजा हण्णमणुकोसं तेत्तीसं सागरोत्रमाई ठिई पण्णत्ता ॥ १२ ॥ अत्थिणं भंते ! पलिओबम सागरोवमाणं खएड्वा अवचएइवा ? हंता अस्थि ॥ से केणट्टेणं भंते ! एवं बुच्चइ, अत्थिणं एएसिं पलिओवम सागरोवमाणं जाव अवचएइवा एवं खलु सुदंसणा ! तेणं कालेणं तेणं समएणं हत्थिणापुरे णयरे होत्या. वण्णओ सहसंबवणे णामं उज्जाणे व ओ॥ तत्थणं हत्थिणापुरे णामं णयरे, बले णामं राया होत्था वण्णओ अहो भगवन् ! नारकी की कितनी स्थिति कही ? अहो सुदर्शन ! स्थिति पद से जानना यावत् सर्वार्थ ( सिद्ध की अजघन्य अनुत्कृष्ट तेत्तीस सागरोपम की स्थिति कही ।। १२ ॥ अहो भगवन् ! क्या इन पल्यो पम व सागरोपम की स्थिति का क्षय व अपचय होता है ? हां ऐसी पल्योपम की स्थिति का क्षय होता (है. अहो भगवन् ! ऐसा किस कारन से कहा है ? अहो सुदर्शन ! उस काल उस नामक नगर था. उसकी बाहिर सहस्राम्रवन नामक उद्यान था. उस हस्तिनापुर नगर में बल नामक राजा
समय में हस्तिनापुर
4 पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
अग्यारवा शतक का अग्यारवा उद्देशा
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