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सत्र
भावार्थ
अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषीजी
जहणिया तिमुहुत्ता दिवसस्स पोरिसी भइ ॥ ६ ॥ कयाणं भंते! उक्कोसए अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुबालसमुहुत्ता राई भवइ, कयावा उक्कोसिया अट्ठारस मुहुत्ता राई भवइ; जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ ? सुदंसणा ! आसाढ पुणिमा उक्कोसए अट्ठारसमुहुते दिवसे भवइ, जहण्णिया दुवालसमुहुत्ता राई भइ; पोस पुण्णिमाएणं उक्कोसिया अट्ठारस मुहुत्ता राई भवइ, जहण्णए दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ ॥ ७ ॥ अस्थि भंते! दिवसाय राईओय समाचेव भवंति ? हंता अत्थि । कयाणं भंते! दिवसाय राईओय समाचेव भवंति ? सुदंसणा ! साढे चार महूर्त की रात्रि की पौरुषी व तीन मुहूर्त की दिन की पौरुषी होती है ॥ ६ ॥ अहो भगवन् अठारह मुहूर्त का दिन व बारह मुहूर्त की रात्रि कब होती है और बारह मुहूर्त का दिन व अठारह मुहूर्त की रात्रि कब होती है ? अहो सुदर्शन ! आषाढ पूर्णिमा को उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन व जघन्य बारह मुहूर्त की रात्रि होती है और पोष पूर्णिमा को उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि व बारह मुहूर्त का {दिन होता है ॥ ७ ॥ अहो भगवन् ! क्या दिन रात्रि सम होते हैं ? हां सुदर्शन ! दिन रात्रि सरिखे होते हैं. अहो भगवन् ! दिन रात्रि कब सरिखे होते हैं ? अहो सुदर्शन ! चैत्य व आशो पूर्णिमा को
* प्रकाशक - राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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