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शब्दार्थ १. पर्युषासना करे ॥ १॥ त० तब से वह सु . मुदर्शन से० श्रेष्ठी इ० इस क० कथा को ल० प्राप्त
होते ण्डा० स्नान किया क० किया जा० यावत् पा० तिलमसादि किये स० सर्व अ. अलंकार वि० । विभूषित सा०अपना गि• गृह से प० नीकलकर स० कोरंटक की म० पुष्पमाला छ छव ध० धरते पा.
पादविहार से म० बड पु० पुरुष व चाकरसे प० घेराये हुवे वा० वाणिज्यग्राम ण नगर की म० मध्य से कणि नीकलकर जे० जहां दूदूसिपलाल दे० चैत्य स. श्रमण भ० भगवन्त म० महावीर ते० तहां उ० __सामी समोसड्डे जाव परिसा पज्जुवासइ॥ १ ॥ तएणं से सुदंसणे सेट्ठी इमीसे कहाए
लट्ठ समाणे हट्ट तुढे पहाए कय जाव पायच्छित्ते सव्वालंकार विभूसिए साओ गिहाओ पडिणिक्खमइ २ त्ता सकोरंटमल दामेणं छत्तेणं धरिजमाणेणं पाद विहार
चारणं महया पुरिसरग्गुरा परिक्खित्ते वाणियगाम णयरं मज्झं मज्झेणं निग्गच्छइ २ यावत् अपराभूत श्रमणोपासक था. जीवाजीवादि नव तत्व को जानता हुवा यावत् विचरता था. उस काल उस समय में श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी पधारे परिषदा वंदने को आई ॥ १॥ उस काल उस समय में सुदर्शन शेठ श्री श्रमण भगवंत महावीर स्वामी दूतिपलाश उद्यान में पधारे हैं ऐसी कथा सुनकर बहुत हर्षित हुवे फीर स्नान किया यावत् तीलमसादिक करके सर्वालंकार से विभूषित बने. फीर स्वतः के मह से नीकलकर कोरंटक वृक्ष के पुष्पों की मालावाला छत्र धारण कर पाद विहार से (पग से चलते हो)
पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भवगती) सूत्र
अग्यारवाशतकका अग्यारत्रा उद्देशान
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