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पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र
सहस्साउए दारए पयाए, ॥ तएणं तस्स दारगस्स अम्मापियसे पहीणा भवंति, णोचेवणं तेदेवा अलोयंतं संपाउणंति, तंचे जाव ॥ तेसिणं भंते ! देवाणं किं गए बहुए अगए बहुए? गोयमा ! णोगए बहुए अगए बहुए; गयाओ से अगए अणंतगुणे, अगयाओ से गए अणंतभागे ॥ अलोएणं गोयमा ! ए महालए पण्णत्त॥२०॥ लोगस्सणं भंते ! एगम्मि अगासपदेसे जे एगिदियपएसा जाव पंचिंदियप्पदेसा. अणिंदियप्पदेसा अण्णमण्णस्स बढा, अण्णमण्णस्स पुट्टा जाव अण्णमण्णस्स घडत्ताए
चिटुंति अत्थिणं भंते ! अण्णमण्णस्स किंचि आवाहवा, वावाहवा, उप्पायंति, छविअर्थात् वे बहुत क्षेत्र उल्लंघ गये हैं या उन को बहुत क्षेत्र उल्लंघना बाकी है ? अहो गौतम ! उन को गत क्षेत्र बहुत नहीं है परंतु अगत क्षेत्र बहुत है, गत क्षेत्र से अगत क्षेत्र अनंत गुना है व अगत क्षेत्र से गत क्षेत्र अनंत भाग वाला है ॥ २० ॥ अहो भगरन् ! लोक के एक आकाश प्रदेश में एके-12 न्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय चतुरेन्द्रिय, व पंवेन्द्रिय, व अनेन्द्रिय के आत्म प्रदेश परस्पर स्पर्शे यावत् संघटित होकर रहे तो, या उन प्रदेशों को किचिन्मात्र बाधा, विवाधा अथवा चर्मच्छेद क्या होता है ? अहो गौतम ! यह भर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् उन प्रदेशों को किसी प्रकार की बाधा पीडा नहीं होती है. अहोई
अग्यारवा शतकका दशवा उद्दशा gig
भावार्थ
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