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________________ 8 8 पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र सहस्साउए दारए पयाए, ॥ तएणं तस्स दारगस्स अम्मापियसे पहीणा भवंति, णोचेवणं तेदेवा अलोयंतं संपाउणंति, तंचे जाव ॥ तेसिणं भंते ! देवाणं किं गए बहुए अगए बहुए? गोयमा ! णोगए बहुए अगए बहुए; गयाओ से अगए अणंतगुणे, अगयाओ से गए अणंतभागे ॥ अलोएणं गोयमा ! ए महालए पण्णत्त॥२०॥ लोगस्सणं भंते ! एगम्मि अगासपदेसे जे एगिदियपएसा जाव पंचिंदियप्पदेसा. अणिंदियप्पदेसा अण्णमण्णस्स बढा, अण्णमण्णस्स पुट्टा जाव अण्णमण्णस्स घडत्ताए चिटुंति अत्थिणं भंते ! अण्णमण्णस्स किंचि आवाहवा, वावाहवा, उप्पायंति, छविअर्थात् वे बहुत क्षेत्र उल्लंघ गये हैं या उन को बहुत क्षेत्र उल्लंघना बाकी है ? अहो गौतम ! उन को गत क्षेत्र बहुत नहीं है परंतु अगत क्षेत्र बहुत है, गत क्षेत्र से अगत क्षेत्र अनंत गुना है व अगत क्षेत्र से गत क्षेत्र अनंत भाग वाला है ॥ २० ॥ अहो भगरन् ! लोक के एक आकाश प्रदेश में एके-12 न्द्रिय, बेइन्द्रिय, तेइन्द्रिय चतुरेन्द्रिय, व पंवेन्द्रिय, व अनेन्द्रिय के आत्म प्रदेश परस्पर स्पर्शे यावत् संघटित होकर रहे तो, या उन प्रदेशों को किचिन्मात्र बाधा, विवाधा अथवा चर्मच्छेद क्या होता है ? अहो गौतम ! यह भर्थ समर्थ नहीं है अर्थात् उन प्रदेशों को किसी प्रकार की बाधा पीडा नहीं होती है. अहोई अग्यारवा शतकका दशवा उद्दशा gig भावार्थ P8
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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