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________________ मुनि श्री अमोलक ऋषिजी भावार्थ त्तरस्स पव्वयस्स चउसुवि दिसासु विदिसासुय बहियाभिमुही ठिच्चा अट्टबलिपिंडं जमगसमगं बहियाभिमुहीओ पक्खिवेजा, पभणं गोयमा! तओ एगमेगे देवे ते अट्ठ बलिपिंडं धरणितलमसंपत्ते खिप्पामेव पडिसाहरित्तए, तेणं गोयमा! देवा ताए उक्विट्ठाए जाव देवगईए लोगते ठिच्चा असब्भाव पटवणाए, एगेदेवे पुरत्थाभिमुहे पयाए, एगेदेवे दाहिण पुरत्थाभिमुहे पयाए एवं जाव उत्तर पुरत्याभिमुहे पयाए, एगेदेवे उढाभिमुहे, एगेदेवे अहेभिमुहे पयाए, ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं वाससय चारों दिशा विदिशा की तरफ मुख करके खडी रहे. और वे बाहिर मुख करके खडी रही हुई देवियों एक साथ उन आठ पिंड को फेंके तब उक्त देवों उन आठों बलिरिंड को पृथ्वीपर गिरते पहिले पकडने को, समर्थ होते हैं अब अहो गौतम ! ऐसी दीव्य उत्कृष्ट गति से लोकांत में खडेरह कर असद्भाव स्थापना से एक पूर्व में, एक अग्नि में यावत् एक ईशान में एक अधो में व एक ऊर्ध में चलना शरुकरे. उस समय में एक सोवर्ष के आयुष्य वाला बालक का जन्म होवे अब बालक के मात पिता मरजावे वहां तक भी उक्त देवों अलोक का अंत नहीं कर सकते हैं. स्वतः सोवर्ष का अयुष्य पूर्ण कर जावे तो भी है वे अलोक के अंत में जासके नहीं , यावत् अहो भगवन् ! क्या वे गत बहुत हैं या अगत बहुत हैं ? १. अलोक में किसी जीव या पुदल का गमन नहीं होता है परंतु प्रमाण केलिये असदभाव की स्थापना की है. . प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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