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च्छेदं करेंति ? णोइणटे समटे ॥ सेकेणटेणं भंते! एवं वुच्चइ लोगस्सणं एगम्मि आगासप्पदेसे जे एगिदियप्पदेसा जाव चिटुंति णात्थिणं अण्णमण्णस्स किंचि आवाहंवा जाव करेंति ? गोयमा ! से जहा णामए नटिया सिया, सिंगारागार चारवेसा जाव कलिया रंगट्टाणंसि जणसयाउलंसि जणसयसहस्साउलंसि बत्तीसइ विहस्स नदृस्स अण्णयरं नदृविहिं उवदसिज्जा, सेणूणं गोयमा ! ते पेच्छागा तं नहियं अणमिसाए दिट्ठीए सव्वओ समंतां समभिलोएत्ति? हंता भंते! समभिलोए ॥ ताओणं
गोयमा! दिट्ठीओ तंसि नटियंसि सव्वओ समंता सण्णिघडियाओ हंता सण्णिघोडयाओ भावार्थ भगवन् ! किस कारन से उन जीव प्रदेशों को बाधा, विबाधा व विच्छेद नहीं होता है ? अहो गौतम !!
नृत्य करनेवाली शृंगार का गृह रूप मनोहर रूप धारन करनेवाली यावत् राग के स्थानों के भाव भेद. जाननेवाली होवे. वह लाखों मनुष्यों के समूह में बत्तीस प्रकार के नाटकों में से किमी प्रकार का नाटक कर लोकों को बतलावे तो क्या गौतम ! वे देखनेवाले हजारों लाखों मनुष्यों उस नृत्य करने
वाली की तरफ मेषोन्मेष क्या देखते हैं. ? गौतम स्वामी बोले कि हां देखते हैं. अहो यौतम ! सब मनुॐष्यों की दृष्टि से उस को क्या किसी प्रकार की बाधा विनाधा होती है ? अहो भगवन् ! वैले बाधा
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
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• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेव सहायजी ज्वालाप्रसादजी *