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सेणं गोयमा! देवा ताए उक्विट्राए जाव देवगइए एगे देवे पुरत्थाभिमुहे पयाए एवं दाहिणाभिमुहे, एवं पञ्चत्थाभिमुहे, एवं उत्तराभिमुहे, एवं उढाभिमुहे एगे देवे अहे पयाए ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं वाससहस्साउए दारए पयाए, तएणं तस्स दारगस्स अम्मागियरो पहीणा भवंति, णोचेवणं ते देवा लोगंतं संपाउणंति; तएणं तस्स दारगस्स आउपहीणे भवइ, णोचेव जाव संपाउणंति, तएणं तस्स दारगस्स अट्ठीमिजा पहीणा भवंति णोचेवणं ते देवा लोगंतं संपाउणंति, तहेवणं तस्स दार
गरस आसत्तमे कुलवंसे पहीणे भवइ णोचेवणं ते देवा लोगंतं संपाउणंति, तएणं तस्स भावार्थ - अहो गौतम ! उक्त एक २ देव चारों पिण्ड धरणि तल में गिरने के पाहिले उठाने को शीघ्र समर्थ होते हैं.
इतनी शोधू दीव्य देवगति से छ देवों में एक पूर्व में एक दक्षिण में, एक पश्चिम में, एक उत्तर में, एक, ऊर्ध्व में व एक अधो में ऐसी दिशा में जावे. उस काल उम समय में किस को सो वर्षका अयुष्यवाला बालक डावे. उस बालक के मात पिता काल करजावे इतने समयमें वे लोक के अंत में नहीं जासके उस बालकका आयुष्य भी पूर्ण होजावे तो भी वे लोक के अंत में नहीं जासके और उस बालक के अस्थी अस्थि निजी वगैरह नष्ट होजावे तो भी वे लोक के अंतमें नहीं पहुंच सके ऐसे ही उस बालक के सात वंश ।
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी.
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*