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एगे अजीव दव्वदेसे जाव अणंतभागूणे ॥ १८ ॥ लोएणं भंते के महालए पण्णत्ते ? गोयमा! अयण्णं जंबुद्दीवे दीवे सव्वदीव जाव परिक्खेवेणं ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं छदेवा महिावया जाव महेसक्खा, जंबूद्दीवे दीवे मंदरे पव्वए चूलिए सम्बओ समंता संपरिक्खित्ताणं चिट्ठिजा, अहेणं चत्तारि दिसा कुमारिओ महत्तरियाओ चत्तारि बलिपिंडं गहाय जंबूद्दीवस्स दीवस्स चउसुवि दिसासु बहियाओ अभिमुहीओ ठिच्चा ते चत्तारि बलिपिंडे जमगसमगं बहियाभिमुहे पक्खिविजा; पभूणं गोयमा !
तओ एगमेगे देवे ते चत्तारि बलिपिंडे धरणि तलमसंपत्ते खिप्पामेव पडिसाहरित्तए भावार्थ ऊर्ध्व लोक का जानना. भाव से लोक में अलोक में अनंत वर्ण पर्यत्र नहीं है यावन् अनंत अगुरु लघु
पर्थव नहीं है मात्र एक अजीव द्रव्य यावत् अनंत भाग कम है ॥ १८ ॥ अहो भगवन् ! लोक कितना बडा कहा ? अहो गौतम ! सब द्वीपों की बीच में जम्बूद्वीप नामक द्वीप रहा हवा है एक लक्ष योजन का
यह लम्बा चौडा है और ३१६२२८ योनन में कुछ कम की परिधि है. उस काल. उस समय में बड़े व 80 *महा ऋद्धिवंत छ देव जम्बूद्वीप के मेरु पर्वत की चूलिका को चारों तरफ घेर कर खडे रहे अब जम्बूद्वीप
की बाहिर रही हुई चार दिशाकुमारियों सन्मुख खडी रह कर बलि पिण्ड को एक साथ नीचे डाले..।
480 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती )
Pagअग्यारवा शतकका दशवा उद्देशा