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गणे ॥ १७ ॥ दव्वआणं अहेलोय खेत्तलोए अणंता जीवदव्वा, अणंता अजीवदव्वा अणंता जीवाजीवदव्या, एवं तिरियलोय खेत्तलोएवि; एवं उड्डलोय खत्तलोएवि ॥ दवाणं अलोए णेवत्थि जीवदव्वा. णेवत्यि अजीवदव्या, गेवत्थि जीवा जीवदव्या, एगे अजीव दव्वदेसे जाव सव्वागासस्स अगंतभागूणे ॥ कालओणं अहेलोय खेत्तलोए जाव णकयायि णामि जाव णिचं, एवं जाव अलोए ॥ भावओणं अहेलोग खेत्तलोगे अणंता, वण्णपजवा, जहा खंदए जाव अणंता अगुरुय लहुय पजवा, एवं
जाव लोए ॥ भावओणं अलोए णेवत्थि वण्णपजवा जाव वत्थि अगुरुलहुय पजवा, भावार्थ अनंत जीप द्वव्य, अनंत अजीव द्रव्य, अनंन जीवाजीव द्रव्य. ऐसे ही ती लोक में व ऊर्व लोक में 3
जानना. अलोक में द्रव्य से जीव द्रव्य नहीं है अंजीव द्रव्य नहीं है व जीवाजीव द्रव्य नहीं हैं मात्र एक अजीव द्रव्य देश यावत् सर्वाकाशका अनंत भाग कम है. काल से अधोलोक पहिले कदापि नहीं था से नहीं, वर्तमान में नहीं है वैसा नहीं व अनागत में नहीं होगा वैसा नहीं परंतु नित्य शाश्वत यावत्
ध्रुव है. ऐसे ही तीर्छा लोक ऊर्ध्व लोक व अलोक का जानना. भाव से अधोलोक में अनंत वर्ण पर्यव २यक्ति अनंत अगुरु लघु पर्यव वगैरह जैसे स्कंधक का कहा वैसे ही जानना. ऐसे ही तीर्छा लोक व
१ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 22
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी